शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

some historical stories of etah by Krishnaprabhakar upadhyay

यहां सुल्तान बलबन ने 6माह तक कराया नृशंस कत्लेआम
मुहम्मद गोरी की दिल्ली-कन्नौज विजय के बाद उसके अधिकार क्षेत्र में आये भारतीय क्षेत्रों को स्वभावतः उसका राज्य माना गया किन्तु वास्तव में ऐसा था नहीं। इस क्षेत्रों के भारतीय नरेश अपनी मातृभू के एक-एक अंगुल के लिए तब तक संघर्ष करते रह,े जब तक जीवन रहा अथवा पराजित न हुए।
1194ई0 में फिरोजाबाद जिले के चंदवार नामक स्थान पर गोरी-जयचंद युद्ध के बाद मुहम्मद गोरी जयचंद द्वारा शासित बनारस-बिहार तक विस्तृत राज्य के कतिपय क्षेत्रों पर लूटमार करने में भले ही सफल रहा हो, विजित किसी भी क्षेत्र को नहीं कर सका था। राज्याधिकार तो अभी दूर की बात थी।
इस क्षेत्र के प्रभावी कन्नौज नरेश जयचंद की मौत के बावजूद उसकी राजधानी अभी सुरक्षित थी जहां से उसके पुत्र हरिश्चद्र(उपनाम बरदाईसेन) के नेतृत्व में भारतीय वीर अपनी जन्मभूमि की रक्षा को तत्पर थे।
अपनी कथित विजय के बाद भी भारतीय क्षेत्रों पर अधिकार करने में असफल रहा गोरी 1198ई0 में एक बार फिर लौटा और इस बार कन्नौज को अपना निशाना बना उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस हानि के बाद कन्नौजी शक्ति विखण्डित हो गयी।
महाराज हरिश्चन्द्र ने पहले इटावा जनपद को अपना केन्द्र बनाया किन्तु वह भी हाथ से निकला तो फरूखाबाद जिले के खोर(आधुनिक शम्शाबाद) नामक स्थान पर केन्द्रित हो गये। महाराज के साथी-सहयोगियों ने आसपास के पटियाली, कम्पिल व भोजपुर जैसे गंगातटीय स्थलों में अपने केन्द्र बनाए।
गोरी के प्रतिनिधि के रूप में दिल्ली के सुल्तान बने उसके गुलाम कुतबुद्दीन ऐबक, 1210 में सुल्तान बने आरामशाह, 1210 में ही सुल्तान बने शमशुद्दीन अल्तमश (इल्तुतमिश), 1236 के स्कनुद्दीन फिरोजशाह जो मात्र 6 माह 28दिन सुल्तान रहा, तत्पश्चात सुल्तान बनी रजिया बेगम, 1240 में रजिया को मार सुल्तान बनाया गया बहरामशाह, 1242 का अलाउद्दीन शाह आदि सभी ऐसे सुल्तान से जो एक ओर अपने आंतरिक संघर्षो में उलझे थे दूसरी ओर एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे थे तो दूसरी ओर भारतीय नरेश एक के बाद एक अपने खोये क्षेत्र वापस लेते जा रहे थे।
इस मसूदशाह का एक सेनानायक था बहाउदफदीन बलवन। महमूद ने इसका विश्वास कर इसे उलूगखां की उपाधि व सेना पर नियंत्रण के अधिकार दे रखे थे। यह 1246 में सुल्तान बने नासिरूद्दीन महमूद के काल तक इतना शक्तिशाली हो गया कि 1266 में उसे मार स्वयं सुल्तान बन बैठा।
बलबन के काल तक आते-आते इस कथित दिल्ली सुल्तनत (जिसे भ्रमवश भारत की सुल्तनत समझा और प्रचारित किया जाता है) का हाल इतना बुरा था कि ‘दिल्ली के आसपास रहनेवाले मेवों के भय से नगर के पश्चिमी द्वारा दोपहर की नमाज के परूचात बंद कर दिए जाते थे।’ द्वार बंद होने के बाद किसी का इतना साहस तक नहीं होता था कि वह वहां स्थित मकबरों व तालाबों की भी सैर को जा सके। ऐसा नहीं कि मेवों का भय दोपहर बाद से ही शुरू होता हो। चारों तरफ से घेर ली गयी दिल्ली राजधानी व सुल्तनत के अधिकांश क्षेत्रों में दोपहर पूर्व भी ये यथाशक्ति लोगों को सताते रहते थे।
ऐसी स्थिति में सुल्तान बनने के बाद बलबन ने साहसिक कदम उठा सबसे पहले तो मेवों का दमन कराया। वहां के जंगल नष्ट कराये तथा उनके गांवों में नृशंस कत्लेआम कराए। इस कार्य में सफल होते ही उसने सुल्तनत की दूसरी समस्या- भारतीय नरेशों द्वारा स्वाधीन कराए क्षेत्रों को मुक्त कराने के प्रयास प्रारम्भ किये।
दिल्ली से लगे दोआब के क्षेत्र (गंगा-यमुना का मध्यवर्ती भाग) का हाल तो इतना बुरा था कि सुल्तनतकालीन इतिहासकार बरनी के शब्दों में --
मेवों की समस्या का समाधान कर बलबन ने दोआव के क्षेत्रों पर ध्यान दिया। प्रायः समूचाक्षेत्र स्वाधीन तो था ही, मुस्लिम शासकों के प्रति इतना असहिष्णु था कि उनके संरक्षण में चलनेवाले व्याार के गंगानदी-मार्ग पर अपना कड़ा अधिकार जमाए था। बलबन के हिन्दुस्थान (वास्तव में अवध आदि स्वाधीन तथा दिल्ली सुल्तनत से प्रथक क्षेत्र) से होनेवाले व्यापार के लिए जानेवाले कारवां के मार्ग की बड़ी वाधा इस क्षेत्र के पटियाली, कम्पिल व भोजपुर के दुर्ग तथा वहां के नरेश (इन्हें ही सुल्तनत के विवरण विद्रोही की संज्ञ देते हैं)।
बरनी के अनुसार ‘दोआब की समस्या का समाधान करने के पश्चात बलवन ने हिन्दुस्तान का मार्ग खोलने की दुश्टि से दो बार नगर से कूच किया (निश्चय ही पहले कूच में उसे असफलता मिली)’। वह कम्पिल व पटियाली पहुंचा और उन क्षेत्रों में 5 या 6 मास रहा।
लगता है बलबन का यह दूसरा अभियान भी असफलता की ओर बढ़ रहा था। इसीलिए खिसियाए बलबन ने (इतिहासकार बरनी के अनुसार) बिना किसी सोच-विचार के डाकुओं और विद्रोहियों (वास्तव में स्वाधीनता के पुजारियों) का संहार किया। हिन्दुस्तान का मार्ग खुल गया तथा व्यापारी व कारवां सुरक्षित आने-जाने लगे। इन क्षेत्रों से भारी मात्रा में लूट की सम्पत्ति दिल्ली लायी गयी जहां दास व भेड़ें सस्ती हो गयीं।
6 माह के नृशंस कत्लेआम के बाद स्वाधीन केन्द्र कम्पिल व पटियाली और भोजपुर के दृढ दुर्ग नष्ट कर वहां ऊॅंची व विशाल मस्जिदों का निमार्ण कराया गया तथा यह क्षेत्र दुर्ग से सम्बद्ध भूमिसहित अफगानों को कररहित रूप से सोंप दिया गया।
(एटा व फरूखाबद जिलों में रह रहे प्राचीन अफगान शासक परिवार तथा अलीगढ जिले का जलाली व अन्य अफगानियों के शासन में रहे कस्बे इसी बलबन द्वारा यहां बसाए गये अफगानों के अवशेष हैं)।
दिल्ली सुल्तनत की ढ़ाई वर्ष राजधानी रहा है पटियाली का स्वर्गद्वारी क्षेत्र
जी हां, यह सच है। पटियाली के समीपवर्ती क्षेत्र स्वर्गद्वारी में एक-दो दिन नहीं पूरे ढाई बरस दिल्ली सुल्तनत की राजधानी रही है।
यह कहानी है नवम्बर21, 1324 (14 जिलहिज्जा 724 हिजरी) को दिल्ली के सुल्तान बने मुहम्मद बिन तुगलुक के समय की। दिल्ली सुल्तनत का सुल्तान बनने के बाद 1328-29 में उसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद(देवगिरि) ले जाने का प्रयास किया किन्तु वहां की विपरीत परिस्थितियों के कारण 1330-31 में दिल्ली वापसी कर फिर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
दिल्ली से देवगिरि के गमनागमन में न तो लोग व्यवस्थित हो सके न किसानों द्वारा समय पर फसलें ही उगायी जा सकीं। ऐसे में 1333 में वर्षा न होने से दिल्ली में अकाल की स्थित बन गयी।
सुल्तान ने इस स्थिति का सामना करने के लिए पहले तो दोआब के हिन्दू किसानों पर भूमिकर एक से बढ़ाकर दस गुना कर इस कठोर मांग को इतने उत्पीड़न से पूरा कराया कि उत्पीडि़त दोआबवासी अपनी-अपनी फसलों को खुद जलाने लगे तथा स्वयं वनों की शरण लेने लगे।
जब दोआब से खाद्यान्न की आपूर्ति न मिली तो सुल्तान ने अपने शिकदारों को उन्हें लूटने के आदेश दिए। किन्तु इस लूटमार के बावजूद दोआब के असंतुष्ट नागरिकों पर काबू न पाया जा सका तो मुहम्मद तुगलक ने स्वयं शिकार के बहाने बरन (आधुनिक बुलंदशहर) आकर सेना को कन्नौज से डलमऊ तक के क्षेत्रों को लूटने तथा यहां की हिन्दू जनता का वध करने के आदेश दिये।
सुल्तान के इन आक्रमणों ने स्थिति को और दुरूह बना दिया। अंततः सुल्तान ने अकाल से बचने के लिए अपने नागरिकों को सपरिवार हिन्दुस्तान (वास्तव में अवध) जाने की आज्ञा दे दी।
सुल्तान मुहम्मद स्वयं भी राजधानी से बाहर आया तथा पटियाली और कम्पिला (फरूखाबाद जिले का कम्पिल) होता हुआ नगर के सामने गंगा किनारे पहुंचा। यहां नगर के सामने गंगा के किनारे डेरा डाला। सैनिकों ने अपने घास-फूंस के मकान खेती की हुई भूमि पर बनाए तथा इस शिविर का नाम स्वर्गद्वारी रखा गया।
(वास्तव में शिविर का नाम स्वर्गद्वारी रखा नहीं गया वल्कि शिविर के स्वर्गद्वारी नगर के सामने होने के कारण सरकारी अभिलेखों में सर्गद्वारी कहा गया। कारण, किसी मुस्लिम सुल्तान वह भी ऐसे सुल्तान से जो देवगिरि को राजधानी बनाते समय उसका नाम भी दौलताबाद रखता हो, से अपने शिविर का हिन्दू स्वर्गद्वारी या सर्गद्वारी नाम रखने की कल्पना भी नहीं की जा सकती)।
इब्ने बत्तूता के अनुसार सुल्तान को स्वर्गद्वारी शिविर में लगभग ढाई साल रूकना पड़ा। इसके अनुसार  यह शिविर 738 हिजरी से 741 हिजरी (1338 से 1340ई0) तक रहा। इस दौरान उसे अपने सर्वाधिक विश्वसनीय आइनउलमुल्क के अवध, जाफराबाद विद्रोह, शियाबुद्दीन नुसरतखां के बीदर विद्रोह व अलीशाह नाथू के गुलवर्ग विद्रोह का सामना करना पड़ा। इनमें आइनउलमुल्क का विद्रोह सुल्तान को संकट में डालनेवाला था। सुल्तान द्वारा इस काल में दिये अपने आदेशों में स्वयं को दिल्ली सुल्तान के स्थान पर ‘सुल्तान-ए-सर्गदारी’ लिखा जाता था।
रिजोर की 5 हजार सेना भी लड़ी थी बाबर से
सोलहवीं सदी भारतीय इतिहास में दिल्ली सुल्तनत के अंत तथा मुगलवंश की स्थापना के रूप में जानी जाती है।
1526 में मुगलवंश का शासन स्थापित करनेवाले मुगल बादशाह का प्रमुख युद्ध मेवाड़ नरेश राणा सांगा (महाराणा संग्रामसिंह) से ही हुआ था।
फतेहपुर के समीप कानवाह या खानवा नामक स्थल  पर लड़े गये। इस युद्ध में एक ओर राणा सांगा के नेतृत्व में भारतीय सेना थी तो दूसरी ओर आधुनिक शस्त्रों व तोपखाने से सुसज्जित बाबरी सेना।
राणा सांगा की इस सेना में जहां उनके अधीनथ राजाओं व सरदारों का सेन्यल था तो इसमें ऐसे नरेशों की सेनाएं भी थीं जो एक विदेशी शक्ति के भारत में अधिकार का विरोध करने की भावना से स्वेच्छा से इस संघ में सम्मिलित हुए थे।
इन्हीं में एक थे तत्कालीन रिजोर नरेश के सेनानायक तथा चचेरे भाई राव मानकचंद। रिजोर नरेश ने इनके नेतृत्व में 5 हजार सेना का दल इस युद्ध में भाग लेने भेजा था।
आधुनिक टेक्नाॅलाजी व तोपों के समक्ष भारतीय शौर्य टिकता भी कि उसके सेनानायक राणा की आंख में लगा संघातिक वाण, युद्ध की विजय को पराजय में बदल गया। वाण के कारण राणा को युद्धक्षेत्र से हटाया जाना, राणा की पराजय का का कारण बन गया।
महाराणा के युद्धक्षेत्र से हटने के बाद जहां अन्य नरेशों की सेनाएं अपने-अपने राज्यों को वापस चली गयीं वहीं इस युद्ध में अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन करनेवाले राव मानिकचंद को राणा ने वापस न आने दिया। राणा ने इन्हें कई युद्धों में अपने साथ रखा तथा मेवाड़ लौट इन्हें एक बड़ी जागीर दे वहीं स्थापित किया।

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

संयोगिता हरण और सोरों सूकरक्षेत्र

संयोगिता हरण के बाद
 सोरों में हुआ था पृथ्वीराज-जयचंद का आखिरी युद्ध
       ‘पृथ्वीराज रासे’ दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चैहान के कार्यकाल का
 वर्णन करनेवाली सुप्रसिद्ध कृति है। माना जाता है कि इसकी रचना पृथ्वीराज
 के मित्र व दरबारी कवि चंद्रबरदाई द्वारा की गयी है। कतिपय इतिहासकार कई
 स्थानों के इसके विवरणों की अन्य समकालीन विवरणों से असंगति के कारण इसकी
 ऐतिहासिकता को विवादित मानते हैं। हो सकता है कि यह पृथ्वीराज की समकालीन
 कृति न हो किन्तु भाषा (डिंगल) तथा छंद प्रयोग की दृष्टि से यह एक
 प्राचीन कृति है, इसमें कोई संदेह नहीं। अतः स्वाभाविक है कि इतिहास न
 होते हुए भी इतिहास के अत्यन्त निकट की कृति है।
       चूंकि यह वीरकाव्य है अतः अपने नायक (पृथ्वीराज चैहान) का अतिशय
 वीरत्व दर्शाने के लिए इस काव्य में घटनाओं के अलंकारिक विवरण मिलना
 स्वाभाविक हैं।
         रासो का एक सुप्रसिद्ध प्रसंग है ‘संयोगिता हरण’। माना जाता है कि यही
 जयचंद्र व पृथ्वीराज के मध्य मनमुटाब का ऐसा कारण बना जिसके बाद भारत का
 एक बड़ा भाग सदियों के लिए विदेशी विधर्मियों की गुलामी सहने को विवश
 हुआ।
         संयोगिता हरण की कथा के अनुसार जयचंद्र की पुत्री संयोगिता
 दिल्ली-सम्राट की वीरता की कथाएं सुन-सुनकर उन पर बुरी तरह आसक्त थी तथा
 उन्हीं को अपने पति के रूप में वरण करना चाहती थी। इसके विपरीत जयचंद,्र
 पृथ्वीराज से कट्टर शत्रुता रखते थे।
         दोनों की इस शत्रुता के कुछ तो राजनीतिक कारण थे और कुछ थे पारिवारिक।
 कहते हैं कि पृथ्वीराज ने दिल्ली का राज्य अपने नाना दिल्ली के नरेश राजा
 अनंगपाल सिंह तंवर (तोमर) से धोखे से हथियाया था। अनंगपाल के दो
 पुत्रियां थीं। इनमें एक कन्नौज नरेश को तथा दूसरी अजमेर नरेश को ब्याही
 थीं। कन्नौज ब्याही पुत्री के पुत्र जयचंद्र थे जबकि अजमेरवाली पुत्री के
 पृथ्वीराज।
         अनंगपाल के कोई पुत्र न होने के कारण दोनों अपने को अनंगपाल के बाद
 दिल्ली का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते थे। इसमें भी जयचंद्र की सीमाएं
 दिल्ली से मिली होने के कारण इस उत्तराधिकार के प्रति जयचंद्र कुछ अधिक
 ही आग्रही थे। किन्तु छोटा धेवता होने का लाभ उठा पृथ्वीराज अनंगपाल के
 अधिक निकट व प्रिय थे।
         जयचंद्र तो धैर्यपूर्वक समय की प्रतीक्षा करते रहे जबकि पृथ्वीराज ने
 अपनी स्थिति का लाभ उठा, पृथ्वीराज को अपनी यात्राकाल में अपना कार्यभारी
 नियुक्त कर धर्मयात्रा को गये महाराज अनंगपाल की अनुपस्थिति में उन्हें
 सत्ताच्युत कर दिल्ली राज्य ही हथिया लिया। फलतः जयचंद्र की कटुता इतनी
 अधिक बढ़ गयी कि जब उन्होंने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर किये जाने
 का निर्णय लिया तो पृथ्वीराज को आमंत्रित करने के स्थान पर उनकी एक
 स्वर्ण प्रतिमा बना उसे द्वारपाल के रूप में स्थापित करा दिया।
 इधर प्रथ्वीराज को निमंत्रण न भेजे जाने की सूचना जब संयोगिता को मिली तो
 उसने अपना दूत दिल्ली-सम्राट के पास भेज उन्हें परिस्थिति से अवगत कराते
 हुए अपना प्रणय निवेदित किया और सम्राट पृथ्वीराज ने भी संयोगिता के
 ब्याज से जयचंद्र के मान-मर्दन का अवसर पा अपनी तैयारिया आरम्भ कर दीं।
         स्वयंवर की निर्धारित तिथि को संयोगिता के साथ बनी योजना के तहत
 पृथ्वीराज गुप्त वेश में कन्नौज जा पहुंचे और स्वयंवर के दौरान जैसे ही
 संयोगिता ने सम्राट की स्वर्ण प्रतिमा के गले में जयमाल डाली, अचानक
 प्रकट हुए प्रथ्वीराज संयोगिता का हरण कर ले उड़े। अचानक हुई इस घटना से
 हक्की-बक्की दलपुंगव कन्नौजी सेना जब तक घटना को समझ पाये, पृथ्वीराज
 दिल्ली की ओर बढ़ चले।
         चूकि यह हरण पृथ्वीराज की सुविचारित योजना से अंजाम दिया गया था अतः
 पृथ्वीराज के चुनींदा सरदार स्थान-स्थान पर पूर्व से ही तैनात थे तथा
 किसी भी परिस्थित का सामना करने को तैयार थे। इन सरदारों ने प्राणों की
 बाजी लगाकर अपने सम्राट का वापसी मार्ग सुगम किया।
 ( फिरोजाबाद जिले के पैंड़त नामक स्थल में पूजित जखई महाराज, एटा जिले के
 मलावन में पूजित मल्ल महाराज तथा अलीगढ़ जनपद के गंगीरी में पूजित
 मैकासुर के विषय में बताया जाता है कि ये पृथ्वीराज की सेना के उन्हीं
 चुनींदा सरदारों में थे जिन्होंने कन्नौज की सेना के सम्मुख अवरोध खड़े
 करने के दौरान अपने प्राण गवांए।)
         एक ओर एक राज्य की दलपुगब कहलानेवाली सशक्त सेना, दूसरी ओर चुनींदा
 सरदारों के नेतृत्व में स्थान-स्थान पर बिखरी सैन्य टुकडि़यां। इस बेमेल
 मुकाबले में पृथ्वीराज के सरदार कन्नौजी सेना की प्रगति रोकने में अवरोध
 तो बने, उसकी प्रगति रोक न पाये।
         और पृथ्वीराज के सोरों तक पहुंचते-पहुंचते कन्नौज की सेना ने पृथ्वीराज
 की घेरेबंदी कर ली।
         अनुश्रुतियों एवं पुराविद रखालदास वंद्योपाध्याय के अनुसार सोरों के
 सुप्रसिद्ध सूकरक्षेत्र के मैदान में पृथ्वीराज व जयचंद्र के मध्य भीषण
 युद्ध हुआ तथा इस युद्ध में दोनों पक्षों के अनेक सुप्रसिद्ध योद्धा
 वीरगति को प्राप्त हुए। अंततः एकाकी पड़ गये प्रथ्वीराज को कन्नौजी सेना
 ने बंदी बना लिया तथा उनहें जयचंद्र के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
         क्रोधावेशित जयचंद्र तलवार सूंत पृथ्वीराज का वध करने ही वाले थे कि
 उनके सम्मुख संयोगित अपने पति के प्राणदान की भीख मांगती आ खड़ी हुई।
 अपनी पुत्री को अपने सम्मुख देख तथा नारी पर वार करने की हिन्दूधर्म की
 वर्जना के चलते जयचंद्र ने अपनी तलवार रोक ली और- दोनों को जीवन में फिर
 मुंह न दिखाने- का आदेश दे तत्काल कन्नौज राज्य छोड़ने को कहा।
         पृथ्वीराज रासो के 61वें समय में इस प्रसंग का अंकन इस प्रकार हुआ है-
         जुरि जोगमग्ग सोरों समर चब्रत जुद्ध चंदह कहिया।।2401।।
         पुर सोरों गंगह उदक जोगमग्ग तिथि वित्त।
         अद्भुत रस असिवर भयो, बंजन बरन कवित्त।।
         अत्तेन सूरसथ तुज्झा तहै सोरों पुर पृथिराज अया।।2402।।
 (इस सम्बन्ध में दो अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। इनमें पहली कथा के अनुसार
 तो संयोगिता नाम की कोई महिला थी ही नहीं। यह पूरा प्रकरण
 एटा-मैनपुरी-अलीगढ व बदायूं क्षेत्र की संयुक्तभूमि (संयुक्ता) पर अधिकार
 के लिए लड़े गये युद्ध का अलंकारिक विवरण है। वहीं दूसरी कथा के अनुसार
 दरअसल संयोगित (इस कथा की शशिवृता) जयचंद्र की पुत्री नहीं ... के जाधव
 नरेश... की पुत्री थी। ... का राज्य पृथ्वीराज की दिग्विजय से आतंकित था
 तथा अपने अस्तित्व के लिए किसी सबल राज्य का संरक्षण चाहता था। इस
 संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उसने अपनी अवयस्क पुत्री शशिवृता को
 जयचंद्र को इस अपेक्षा के साथ सोंपने का निश्चय किया कि भविष्य में उसका
 कन्नौजपति जामाता उसका संरक्षक हो जाएगा। चूंकि यह विवाह राजनीतिक था अतः
 पृथ्वीराज के विरूद्ध अपनी शत्रुता को दृष्टिगत रख जयचंद्र ने भी इस
 प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकारा।
 निर्धारित तिथि को जयचंद्र बारात लेकर पहुंचें, इससे पूर्व ही इस नवीन
 राजनीतिक गठबंधन को ध्वस्त करने के लिए पृथ्वीराज ने इस राज्य पर आक्रमण
 कर दिया। जयचंद्र के साथ गयी सेना के सहयोग से जाधव राजा ने आक्रमण तो
 विफल कर दिया किन्तु इस तनावपूर्ण परिवेश में विवाह की परिस्थिति न रहने
 के कारण जयचंद्र की वाग्दत्ता शशिवृता को जयचंद्र के साथ ही कन्नौज, उचित
 अवसर पर विवाह करने के वचन सहित भेज दिया।
 इस युद्ध में पृथ्वीराज द्वारा दिखाए अपूर्व शौय से प्रभावित शशिवृता
 प्रौढ जयचंद्र के स्थान पर युवा पृथ्वीराज पर आसक्त हो गयी। जहां चाह
 वहां राह। शशिवृता के प्रणय-संदेश तथा संदेशवाहक द्वारा की गयी रूपचर्चा
 ने पृथ्वीराज की आसक्ति भी बढ़ाई और परिणाम- एक षड्यंत्र की रचना हुई।
 इस षड्यंत्र के तहत एक दिन जब सजे-संवरे महाराज जयचंद्र ने दरबार जाने से
 पूर्व सामने मौजूद अपनी वाग्दत्ता शशिवृता से अपनी सजावट के विषय में
 पूछा कि- कैसा लग रहा र्हूं? तो शशिवृता ने उत्तर दिया- जैसा एक पिता को
 लगना चाहिए।
 अवाक् जयचंद्र ने जब इस प्रतिकूल उत्तर का कारण पूछा तो पृथ्वीराज की
 दूती की सिखाई शशिवृता का उत्तर था कि एक कन्या का पालन या तो उसका पिता
 करता है या विवाहोपरान्त उसका पति। चूंकि महाराज से उसका विवाह नहीं हुआ
 है और महाराज उसका पालन भी कर रहे हैं तो महाराज स्वयं विचारें कि वे ऐसा
 किस सम्बन्ध के आधार पर कर रहे हैं।
 निरुत्तर जयचंद्र ने बाद में शशिवृता को स्वयं अपना वर चुनने की
 स्वाधीनता देते हुए स्वयंवर कराया जिस में बाद में घटित घटनाक्रम ऊपर
 वर्णित ही है।)
संयोगिता हरण के बाद
 सोरों में हुआ था पृथ्वीराज-जयचंद का आखिरी युद्ध
       ‘पृथ्वीराज रासे’ दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चैहान के कार्यकाल का
 वर्णन करनेवाली सुप्रसिद्ध कृति है। माना जाता है कि इसकी रचना पृथ्वीराज
 के मित्र व दरबारी कवि चंद्रबरदाई द्वारा की गयी है। कतिपय इतिहासकार कई
 स्थानों के इसके विवरणों की अन्य समकालीन विवरणों से असंगति के कारण इसकी
 ऐतिहासिकता को विवादित मानते हैं। हो सकता है कि यह पृथ्वीराज की समकालीन
 कृति न हो किन्तु भाषा (डिंगल) तथा छंद प्रयोग की दृष्टि से यह एक
 प्राचीन कृति है, इसमें कोई संदेह नहीं। अतः स्वाभाविक है कि इतिहास न
 होते हुए भी इतिहास के अत्यन्त निकट की कृति है।
       चूंकि यह वीरकाव्य है अतः अपने नायक (पृथ्वीराज चैहान) का अतिशय
 वीरत्व दर्शाने के लिए इस काव्य में घटनाओं के अलंकारिक विवरण मिलना
 स्वाभाविक हैं।
         रासो का एक सुप्रसिद्ध प्रसंग है ‘संयोगिता हरण’। माना जाता है कि यही
 जयचंद्र व पृथ्वीराज के मध्य मनमुटाब का ऐसा कारण बना जिसके बाद भारत का
 एक बड़ा भाग सदियों के लिए विदेशी विधर्मियों की गुलामी सहने को विवश
 हुआ।
         संयोगिता हरण की कथा के अनुसार जयचंद्र की पुत्री संयोगिता
 दिल्ली-सम्राट की वीरता की कथाएं सुन-सुनकर उन पर बुरी तरह आसक्त थी तथा
 उन्हीं को अपने पति के रूप में वरण करना चाहती थी। इसके विपरीत जयचंद,्र
 पृथ्वीराज से कट्टर शत्रुता रखते थे।
         दोनों की इस शत्रुता के कुछ तो राजनीतिक कारण थे और कुछ थे पारिवारिक।
 कहते हैं कि पृथ्वीराज ने दिल्ली का राज्य अपने नाना दिल्ली के नरेश राजा
 अनंगपाल सिंह तंवर (तोमर) से धोखे से हथियाया था। अनंगपाल के दो
 पुत्रियां थीं। इनमें एक कन्नौज नरेश को तथा दूसरी अजमेर नरेश को ब्याही
 थीं। कन्नौज ब्याही पुत्री के पुत्र जयचंद्र थे जबकि अजमेरवाली पुत्री के
 पृथ्वीराज।
         अनंगपाल के कोई पुत्र न होने के कारण दोनों अपने को अनंगपाल के बाद
 दिल्ली का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते थे। इसमें भी जयचंद्र की सीमाएं
 दिल्ली से मिली होने के कारण इस उत्तराधिकार के प्रति जयचंद्र कुछ अधिक
 ही आग्रही थे। किन्तु छोटा धेवता होने का लाभ उठा पृथ्वीराज अनंगपाल के
 अधिक निकट व प्रिय थे।
         जयचंद्र तो धैर्यपूर्वक समय की प्रतीक्षा करते रहे जबकि पृथ्वीराज ने
 अपनी स्थिति का लाभ उठा, पृथ्वीराज को अपनी यात्राकाल में अपना कार्यभारी
 नियुक्त कर धर्मयात्रा को गये महाराज अनंगपाल की अनुपस्थिति में उन्हें
 सत्ताच्युत कर दिल्ली राज्य ही हथिया लिया। फलतः जयचंद्र की कटुता इतनी
 अधिक बढ़ गयी कि जब उन्होंने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर किये जाने
 का निर्णय लिया तो पृथ्वीराज को आमंत्रित करने के स्थान पर उनकी एक
 स्वर्ण प्रतिमा बना उसे द्वारपाल के रूप में स्थापित करा दिया।
 इधर प्रथ्वीराज को निमंत्रण न भेजे जाने की सूचना जब संयोगिता को मिली तो
 उसने अपना दूत दिल्ली-सम्राट के पास भेज उन्हें परिस्थिति से अवगत कराते
 हुए अपना प्रणय निवेदित किया और सम्राट पृथ्वीराज ने भी संयोगिता के
 ब्याज से जयचंद्र के मान-मर्दन का अवसर पा अपनी तैयारिया आरम्भ कर दीं।
         स्वयंवर की निर्धारित तिथि को संयोगिता के साथ बनी योजना के तहत
 पृथ्वीराज गुप्त वेश में कन्नौज जा पहुंचे और स्वयंवर के दौरान जैसे ही
 संयोगिता ने सम्राट की स्वर्ण प्रतिमा के गले में जयमाल डाली, अचानक
 प्रकट हुए प्रथ्वीराज संयोगिता का हरण कर ले उड़े। अचानक हुई इस घटना से
 हक्की-बक्की दलपुंगव कन्नौजी सेना जब तक घटना को समझ पाये, पृथ्वीराज
 दिल्ली की ओर बढ़ चले।
         चूकि यह हरण पृथ्वीराज की सुविचारित योजना से अंजाम दिया गया था अतः
 पृथ्वीराज के चुनींदा सरदार स्थान-स्थान पर पूर्व से ही तैनात थे तथा
 किसी भी परिस्थित का सामना करने को तैयार थे। इन सरदारों ने प्राणों की
 बाजी लगाकर अपने सम्राट का वापसी मार्ग सुगम किया।
 ( फिरोजाबाद जिले के पैंड़त नामक स्थल में पूजित जखई महाराज, एटा जिले के
 मलावन में पूजित मल्ल महाराज तथा अलीगढ़ जनपद के गंगीरी में पूजित
 मैकासुर के विषय में बताया जाता है कि ये पृथ्वीराज की सेना के उन्हीं
 चुनींदा सरदारों में थे जिन्होंने कन्नौज की सेना के सम्मुख अवरोध खड़े
 करने के दौरान अपने प्राण गवांए।)
         एक ओर एक राज्य की दलपुगब कहलानेवाली सशक्त सेना, दूसरी ओर चुनींदा
 सरदारों के नेतृत्व में स्थान-स्थान पर बिखरी सैन्य टुकडि़यां। इस बेमेल
 मुकाबले में पृथ्वीराज के सरदार कन्नौजी सेना की प्रगति रोकने में अवरोध
 तो बने, उसकी प्रगति रोक न पाये।
         और पृथ्वीराज के सोरों तक पहुंचते-पहुंचते कन्नौज की सेना ने पृथ्वीराज
 की घेरेबंदी कर ली।
         अनुश्रुतियों एवं पुराविद रखालदास वंद्योपाध्याय के अनुसार सोरों के
 सुप्रसिद्ध सूकरक्षेत्र के मैदान में पृथ्वीराज व जयचंद्र के मध्य भीषण
 युद्ध हुआ तथा इस युद्ध में दोनों पक्षों के अनेक सुप्रसिद्ध योद्धा
 वीरगति को प्राप्त हुए। अंततः एकाकी पड़ गये प्रथ्वीराज को कन्नौजी सेना
 ने बंदी बना लिया तथा उनहें जयचंद्र के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
         क्रोधावेशित जयचंद्र तलवार सूंत पृथ्वीराज का वध करने ही वाले थे कि
 उनके सम्मुख संयोगित अपने पति के प्राणदान की भीख मांगती आ खड़ी हुई।
 अपनी पुत्री को अपने सम्मुख देख तथा नारी पर वार करने की हिन्दूधर्म की
 वर्जना के चलते जयचंद्र ने अपनी तलवार रोक ली और- दोनों को जीवन में फिर
 मुंह न दिखाने- का आदेश दे तत्काल कन्नौज राज्य छोड़ने को कहा।
         पृथ्वीराज रासो के 61वें समय में इस प्रसंग का अंकन इस प्रकार हुआ है-
         जुरि जोगमग्ग सोरों समर चब्रत जुद्ध चंदह कहिया।।2401।।
         पुर सोरों गंगह उदक जोगमग्ग तिथि वित्त।
         अद्भुत रस असिवर भयो, बंजन बरन कवित्त।।
         अत्तेन सूरसथ तुज्झा तहै सोरों पुर पृथिराज अया।।2402।।
 (इस सम्बन्ध में दो अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। इनमें पहली कथा के अनुसार
 तो संयोगिता नाम की कोई महिला थी ही नहीं। यह पूरा प्रकरण
 एटा-मैनपुरी-अलीगढ व बदायूं क्षेत्र की संयुक्तभूमि (संयुक्ता) पर अधिकार
 के लिए लड़े गये युद्ध का अलंकारिक विवरण है। वहीं दूसरी कथा के अनुसार
 दरअसल संयोगित (इस कथा की शशिवृता) जयचंद्र की पुत्री नहीं ... के जाधव
 नरेश... की पुत्री थी। ... का राज्य पृथ्वीराज की दिग्विजय से आतंकित था
 तथा अपने अस्तित्व के लिए किसी सबल राज्य का संरक्षण चाहता था। इस
 संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उसने अपनी अवयस्क पुत्री शशिवृता को
 जयचंद्र को इस अपेक्षा के साथ सोंपने का निश्चय किया कि भविष्य में उसका
 कन्नौजपति जामाता उसका संरक्षक हो जाएगा। चूंकि यह विवाह राजनीतिक था अतः
 पृथ्वीराज के विरूद्ध अपनी शत्रुता को दृष्टिगत रख जयचंद्र ने भी इस
 प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकारा।
 निर्धारित तिथि को जयचंद्र बारात लेकर पहुंचें, इससे पूर्व ही इस नवीन
 राजनीतिक गठबंधन को ध्वस्त करने के लिए पृथ्वीराज ने इस राज्य पर आक्रमण
 कर दिया। जयचंद्र के साथ गयी सेना के सहयोग से जाधव राजा ने आक्रमण तो
 विफल कर दिया किन्तु इस तनावपूर्ण परिवेश में विवाह की परिस्थिति न रहने
 के कारण जयचंद्र की वाग्दत्ता शशिवृता को जयचंद्र के साथ ही कन्नौज, उचित
 अवसर पर विवाह करने के वचन सहित भेज दिया।
 इस युद्ध में पृथ्वीराज द्वारा दिखाए अपूर्व शौय से प्रभावित शशिवृता
 प्रौढ जयचंद्र के स्थान पर युवा पृथ्वीराज पर आसक्त हो गयी। जहां चाह
 वहां राह। शशिवृता के प्रणय-संदेश तथा संदेशवाहक द्वारा की गयी रूपचर्चा
 ने पृथ्वीराज की आसक्ति भी बढ़ाई और परिणाम- एक षड्यंत्र की रचना हुई।
 इस षड्यंत्र के तहत एक दिन जब सजे-संवरे महाराज जयचंद्र ने दरबार जाने से
 पूर्व सामने मौजूद अपनी वाग्दत्ता शशिवृता से अपनी सजावट के विषय में
 पूछा कि- कैसा लग रहा र्हूं? तो शशिवृता ने उत्तर दिया- जैसा एक पिता को
 लगना चाहिए।
 अवाक् जयचंद्र ने जब इस प्रतिकूल उत्तर का कारण पूछा तो पृथ्वीराज की
 दूती की सिखाई शशिवृता का उत्तर था कि एक कन्या का पालन या तो उसका पिता
 करता है या विवाहोपरान्त उसका पति। चूंकि महाराज से उसका विवाह नहीं हुआ
 है और महाराज उसका पालन भी कर रहे हैं तो महाराज स्वयं विचारें कि वे ऐसा
 किस सम्बन्ध के आधार पर कर रहे हैं।
 निरुत्तर जयचंद्र ने बाद में शशिवृता को स्वयं अपना वर चुनने की
 स्वाधीनता देते हुए स्वयंवर कराया जिस में बाद में घटित घटनाक्रम ऊपर
 वर्णित ही है।)

pargana history of kasganj-3

कासगंज जनपद के परगने तथा उनके गांव

1-कासगंज तहसील

1. फैजपुर बदरिया
 कासगंज तहसील का यह परगना उत्तर में गंगा, दक्षिण में पचलाना, बिलराम व सोरों, पश्चिम में अलीगढ तथा पूर्व मं उलाई परगनों से घिरा फैजपुर बदरिया परगना 1872-73 के गजेटियर के अनुसार 31504 एकड़ क्षेत्रफल का 54 राजस्व ग्रामों का परगना है।
परगने के गांव
अशमपुर रामपुर खाम, अशमपुर रामपुर पुख्ता, अल्लीपुर बरबारा खाम, अल्लीपुर बरबारा पुख्ता, अकबरपुर मुडि़या, असतौरिया, अड़ूपुरा, इकलहरा खाम, इकलहरा पुख्ता, इस्माइलपुर, उकर्री, कादरवाड़ी, गुलाबगढ़ी, घटेसर, घूरनपुर खाम, घूरनपुर पुख्ता, चंदनपुर घटियारी, चकूपुर, जरैथा, तारापुर नसीरपुर खाम, तारापुर नसीरपुर पुख्ता, तारापुर कनक, तोलकपुर, धरमपुर, नगरिया बिगाई, नगला लाले, नगला वाशी, नगला सेठू, परमोरा खाम, परमोरा पुख्ता, पाठकपुर, पैसोई, फतेहपुर कलां, बवतोरिया, बसंतनगर, बहोरनपुर ढेलासराय, बनूपुर खाम, बनूपुर पुख्ता, बरौंदा, भसावली, भड़ूपुरा, भीलोर, मड़वली, महमूदपुर खाम महमूदपुर पुख्ता, मालिकपुर, मिर्जापुर, मुहम्मदसराय बदरिया, मुनब्बरपुर गढि़या, रत्ना भोज, सुजावली, सलेमपुर बीबी, सौतुआ।

2. पचलाना
यह भी कासगंज तहसील का परगना है। उत्तर में बूढ़ी गंगा इसे फैजपुर बदरिया से पृथक करती है। पूर्व में फैजपुर व बिलराम, दक्षिण में बिलराम, पश्चिम में अलीगढ जिले का गंगीरी व अतरौली परगनों के मध्य स्थित पचलाना 1872-73 के गजेटियर के अनुसार 25637 एकड़ भूभाग के क्षेत्रफल का 31 ग्रामों का परगना है।
परगने के गांव
एमनपुर, कमूपुर, किसरौली, कुमरौआ, कुढ़ार, कैंड़ी, खेडि़या, खुशालपुर, गोयती, गौशपुर भूपालगढ़ी, घटिया, चकेरी, चण्डौस, झाबर, ताखरू, दौकेली, नमैनी, नगला उल्फत, पचलाना, पट्टी भूड़, फाजिलपुर, बरौली उर्फ बड़ागांव, बिरौची, महेबा कलां, महेबा खुर्द, सिरावली, सुल्तानपुर, सोहबत भूड़ हरसेना, हरनाथपुर, हरनाढेर।

3. सोरों
39 राजस्व ग्रामों के इस परगने के 30 गांव कासगंज तहसील के अंतर्गत आते हैं, जबकि 9 सहावर तहसील का भूभाग हैं। सोरों का पुलिस थाना जिले का सबसे प्राचीन कोतवालीक्षेत्र है।
परगने के गांव
क. कासगज तहसील(30)
आनन्दीपुर, उदरनपुर, कुंवरपुर, खलीलपुर, गौरव पट्टी, गौशपुर उर्फ गंगागढ, जगवंतपुर, जलालपुर, डोरई, तकुआवर, तिम्बरपुर, देबरी प्रहलादपुर, गुड़गुड़ी, पहाड़पुर खुर्द, पहाड़पुर कटरा, फरीदनगर, बहादुरनगर, भरतपुर, मल्लाहनगर, मुसावली, यूसुफपुर, रायपुर पटना, लहर बरकुला, श्यामसर, शाहपुर माफी, सलैमपुर उर्फ नगला भूतल, ब्रहमपुरी(हथलेंड़ी), हरनाथपुर, हुमायूंपुर, होडलपुर।
ख. सहावर तहसील(9)
इल्तफातपुर, कासिमपुर, दरूआपुर, नीमरी, मजीदपुर, मुनब्बरपुर, रेखपुर, किशोरपुर, सैलई।

4. उलाई
पश्चिम में फैजपुर बदरिया, पूर्व में निधिपुर, उत्तर में गंगा तथा दक्षिण में सोरों व सिढ़पुरा परगनों से घिरा उलाई 1872-73 के गजेटियर के अनुसार 47 राजस्व ग्रामों का 31041एकड़ भूभाग के क्षेत्रफल का परगना है। परगने के 16 ग्राम कासगंज तहसील के तथा 31 सहावर तहसील का भूभाग हैं।
परगने के गांव
क. कासगंज तहसील
उढ़ैर पुख्ता, उढ़ैर खाम, खड़ैरी पुख्ता, खड़ैरी खाम, चकगंगसेमर, चंदपुरा गऊपुरा, तुमरिया, दतलाना पुख्ता, दतलाना खाम, बसूपुरा, बघेला पुख्ता, बघेला खाम, मानपुर नगरिया, मौजमपुर हुसैनपुर, शाहपुर शिकोरा, सराय जुन्नादार।
ख. सहावर तहसील
अल्हदीनपुर, कुंवरपुर, कैली बढ़ापुर, खंगारनगर, गढि़या हिमोली, चक नहरिया, नक बोड़ी, चंदवा पुख्ता, चंदवा खाम, तारापुर, दीपपुर, न्यौली, नगला बदन, बाजनगर गुलाबी, बाजनगर जर्द, बाजनगर सफेद, बाजनगर जंगारी, मनिकापुर खाम, मनिकापुर पुख्ता, मुजफ्फरनगर, मुहम्मदपुर, मुहीमनगर, मंगदपुर, मीरापुर, रोशननगर, लक्ष्मीपुर गोपालसिंह, लक्ष्मीपुर दीपसिंह, लक्ष्मीपुर विशालसिंह, लक्ष्मीपुर सुन्दरसिंह, बिकरों, हसनपुर।

5. बिलराम
कासगंज तहसील का 114 राजस्व ग्रामोंवाला यह परगना काफी ऐतिहासिक परगना है। परगने के ढोलना व कासगंज में 2 पुलिस थाने तथा कासगंज में 1 महिला थाना है।
परगने के गांव
अफजलपुर, अगोली किरामई, अमरपुर, अहरौली, अथैया, अल्लीपुर, इखौना, इटौथा, इनायती, ईशेपुर, करसारी हयातगढ़ी, कसेरी, कल्याणपुर, कयामपुर बहेडि़या, कासगंज, कानरखेड़ा, कांतौर, किलौनी रफातपुर, किनावा, कुरामई, कुतुबपुर, कुतुबपुर पट्टी, कुंवरपुर, खेडि़या, खैरपुर, गुरहना, गोरहा, छिनौना, छिछौरा, छावनी, जखा रूद्रपुर, जखेरा महेशपुर, जहांगीरपुर, ज्याउद्दीनपुर, टण्डोली खालसा, टण्डोली माफी, टीकमपुरा, ढिलावली, ढोलना,
ततारपुर माफी, तरौरा, तबालपुर, तबालपुर मौसमपुर, तालिबपुर, तिलसई कलां, तिलसई खुर्द, त्रिलोकपुर माफी, तैयबपुर कमालपुर, तैयबपुर सुजातगंज, दादनपुर, धन्तोरिया, नदरई, नरोली, नसरतपुर, नरायनी, निजामपुर, नौरथा, नौगवां, नगला पीपल, नगला डरू, नगला सुम्मी, पवसरा, पथरेकी, पचैरा जंगल, पचैरा गूजर, पचगाई, पहाड़पुर माफी, फतेहपुर माफी, फरीदपुर, फीरोजपुर सिहोर अलीयारखां, फीरोजपुर सिहोर वकशुल्लाखां, फीरोजपरु सिहोर फरजंदअलीखां, बदनपुर, बढारी वैश्य, बरखुरदारपुर, बरेला, बहादुरपुर,
बाकनेर, ब्राहीमपुर, बिरसुआ, बिरहरा, बिलराम, बेरी, भड़पुरा, भरसोली मुस्तफाबाद, भरसोली जंगल, भामों, भिटौना, भिरौनी, भैंसौरा बुजुर्ग, भैंसौरा खुर्द, मनौटा, मद्दूपुर, महावर, मामों, मुबारिकपुर सिगतरा, मुबारिकपुर माफी, मुहम्मदपुर, मोहनपुरा, रहमतपुर माफी, रामपुर, लुहर्रा, वाहिदपुर खालसा, वाहिदपुर माफी, सतपुरा माफी, सलेमपुर पिरोंदा, सलेमपुर लाला, सुल्तानपुर, सबर, हरियाढेर, हरसिंहपुर सिरौली, हनीता, हिम्मतपुर सई।

2- सहावर तहसील
प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2008 में बनाए कासगंज जिले के समय इस तहसील का सोरों तहसील के नाम से सृजन किया गया था। कालांतर में सोरों का कासगंज के समीप का क्षेत्र कासगंज तहसील से जोड़ सहावर नाम से नई तहसील बनाई गयी। इस तहसील में सहावर परगने के 114 राजस्व गांव, सिढ़पुरा परगने के 26 राजस्वगांवों के अलावा सोरों परगना के 9 व उलाई परगना के 31 राजस्व ग्राम हैं। परगना के सहावर व अमापुर में पुलिस थाने हैं।

6. सहावर
उत्तर-पूर्व में बूढ़ी गंगा, दक्षिण-पश्चिम में काली नदी, उत्तर-पश्चिम में परगना सोरों, दक्षिण-पूर्व में सिढ़पुरा व पटियाली से घिरा सहावर परगना 1872-73 के गजेटियर के अनुसार 74531 एकड़ कृषि भूमि का 114 गांवों का परगना है।
परगने के गांव
अभयपुरा, अभूपुरा, अमापुर, अल्लीपुर, अमिरसा, इतबारपुर, ऊंचागांव, एगवां, कछेला शेरपुर, कनोई, करसाना, कोडरा, खरपरा, खालिकपुर, खोजपुर, गढ़का, गनेशपुर, गंुनार, गेंदूपुरा गोवर्धन, गेंदूपुरा पदमसिंह, चैपारा, चांड़ी, चांदपुर, जखा, जमालपुर, जहांगीरपुर, जैधर, जाटऊ अशोकपुर, जौहरी, डोर्रा, ताजपुर, थरा चीथरा, देवरी, ददवारा, धोरिका, नगला कुंदन, नगला चैबे, नगला नैनसुख, नगरिया, नबावगंज,
नाथूपुर, नादरमई, पदमपुर, पदारािपुर, परतापपुर नियाजुलनिशां, परतापपुर मुहम्मद खां, पीरी, फकौता, फतहपुर तरफ बहटा, फतेहपुर तरफ मो, फरौली, फीरोजपुर नूरूल्ला खां, फीरोजपुर सानी, बजीरपुर, बड़ागांव, बढ़ारीकलां, बढ़ारीखुर्द, बदनपुर, बनूपुर मजरा फरौली, बनूपुरा बकालान, बरीखेड़ा, बस्तरमऊ, बहटा, बसावनपुर, बारानगर, बारापुर, बोडा नगरिया, बौंदर, बीनपुर कलां, बीनपुर खुर्द, भडरी, भनूपुरा कायस्थान, भरतपुर, भुजपुरा, भृगवासिनी, मझोला, मुबारिकपुर, महेशपुर, महदवा, यादगारपुर, रजपुरा, रहीमनगर, रसलुआ सुलहपुर, रायपुर,
रायों, रारा, लखमीपुर, ललूपुरा, लहरा, शेखपुर खुर्द, शेखपुर नर्रई, शेखपुर हुण्डा, शेरपुर, खितौली, छितौनी, टिकुरिया, पिथनपुर, भिलौली, मिडौल खुर्द, मिडौल बुजुर्ग, सिकन्दराबाद, हरथरा, समसपुर डेंगरी, सरसई नरू, सरसई वन, सरसवा, सरसैट, सरौठी, सुजानपुर, सहावर अर्बन, सहावर देहात, सेबका, सादिकपुर।

7. सिढ़पुरा
अकबर के शासनकाल में दस्तूर मारहरा सरकार कोल, सूबा आगरा में रहा सिधपुर या सिढ़पुरा परगना के उत्तर में सहावर-करसाना परगना, पश्चिम में एटा-सकीट, पूर्व में पटियाली तथा दक्षिण में बरना व आजमनगर परगने हैं।
107 राजस्व ग्रामों के इस परगना का क्षेत्रफल 1872-73 के गजेटियर के अनुसार 58957 एकड़ है। इसमें 26 राजस्व ग्राम सहावर तहसील का भाग हैं जबकि 81 पटियाली तहसील का हिस्सा हैं। परगना के सिढ़पुरा गांव में पुलिस थाना है।
परगना के गांव
क.सहावर तहसील
1.अर्जुनपुर नौआबाद, 2.अर्जुनपुर कदीम, 3.आनन्दपुर, 4.कौंधा, 5.जारई, 6.जीगन, 7.थानपुर, 8.देवपुर, 9.नगला खादी, 10.नर्रई, 11.नौगांव, 12.परतापुर, 13.भगूपुरा, 14.राजेपुर, 15.रानामऊ, 16.लक्षिमपुर, 17.बद्दूपुर, 18.बरसोड़ा, 19.बाछमई, 20.बायली, 21.बीरपुर, 22.बिकोरा, 23.हंसपुर, 24.हर्राजपुर, 25.सुजरई, 26.सेमरा मोर्चा।
ख. पटियाली तहसील
1.अजीतनगर, 2.अख्तऊ मंगदपुर, 3.अलहदादपुर, 4.अनगपुर, 5.उतरना, 6.कमालपुर, 7.करमपुर, 8.कलियानी, 9.कायमपुर, 10.किलौनी, 11.कुचलानी, 12.खरगपुर, 13.खरगबनीपुर, 14.खेरिया, 15.खेड़ा जनक, 16.गंगसारा, 17.चांदपुर मेंमड़ा, 18.जलीलपुर श्यामपुर, 19.जासमई, 20.ठाढ़ी, 21.डिलोरी, 22.ढूढरा, 23.तैयबपुर, 24.ताजपुर, 25.देहली खुर्द, 26.देहली बुजुर्ग, 27.दामरी, 28.धनसिंहपुर, 29.धारिकपुर, 30.धुबियाई, 31.नगला डरूआ, 32.नाथपुर, निबरूआ, 33.नौरी, 34.पहलोई, 35.प्रहलाद चक, 36.पावलढहरा, 37.पिथनपुर, 38.पिलखुनी, 39.पीरी, 40.फतहपुरा, 41.बहोरनपुरा, 42.बकावली, 43.बल्लारपुर मजरा पिथनपुर, 44.बल्लारपुर मजरा समोठी, 45.बाजीदपुर, 46.बासी, 47.बिचैल, 48.बिरसिंहपुर, 49.बिलौटी, 50.बीनामऊ, 51.भाऊपुर, 52.भीकपुर, 53.भुजपुरा, 54.भोगपुरा, 55.मनकई, 56.मगथरा, 57.मधूपुरा, 58.मिजखुरी, 59.मुईउद्दीनपुर, 60.रामपुर, 61.रामनगर, 62.रंजीतपुर, 63.लखनपुर, 64.लौनापुर, 65.सरावल, 66.सलूपुरा, 67.समोठी, 68.सिढ़पुरा, 69.सिकहरा, 70.सिसइया, 71.सीमपुर, 72.सुजानपुर, 73.सुल्तानपुर, 74.सुनहरा, 75.सेलोट, 76.सैलई, 77.स्योढ़ी, 78.शेखपुरा, 79.हमीरपुर, 80.हीरापुर अहमद, 81.हीरापुर सोहस्ता।

3- पटियाली तहसील

8. पटियाली
65 राजस्व ग्रामों का 41762 एकड़ क्षेत्रफलवाला यह परगना उत्तर-पश्चिम में सहावर, उत्तर व पूर्व में निधिपुर, पश्चिम में सिढ़पुरा तथा दक्षिण में आजमनगर परगनों से घिरा है। परगना के पटियाली व गंजडुडवारा में पुलिस थाने हैं।
परगने के गांव
1.अकबरनगर पलिया, 2.अल्हैपुर, 3.अलीपुर ककराला, 4.अलीपुर दादर, 5.करनपुर नगला नुनेरा, 6.कुढ़ा, 7.कुतकपुर सराय, 8.गनपतपुर, 9.गढि़या, 10.गढ़ी भदसुआ, 11.गणेशपुर, 12.गुडि़याई, 13.गुढा, 14.चंदपुरा, 15.चिरौला, 16.चैडि़याई, 17.जटपुरा, 18.जवाहरनगर, 19.जागपुरा, 20.जिनौल, 21.गंजडुडवारा, 22.ढकरई, 23.दीवाननगर, 24.दुलाई, 25.धवा, 26.नकटऊ, 27.नगरिया धीर, 28.नगला गौढ़, 29.नगला आसानन्द, 30.नगला भगना, 31.नगला मीना, 32.नगला मल्ली, 33.नरथर, 34.पचपोखरा, 35.पटसुआ, 36.परतापपुर, 37.पटियाली, 38.पिथनपुर .भुजपुरा, 39.प्यारामपुर, 40.पुरसाई 12 बिस्वा, 41.पुरसाई 8 बिस्वा, 42.बकराई भैंसराशि, 43.बहादुरनगर, 44.बरैठी, 45.बनैल, 46.बहोटा, 47.बिशनोदी, 48.बीनपुर, 49.मस्तीपुर, 50.मूढ़ा, 51.रतनपुर, 52.रम्पुरा, 53.रायपुर पाठक, 54.रायपुर पुरोहित, 55.रायपुर मोथर, 56.रूस्तमनगर, 57.रहटा यूसुफपुर, 58.लालगढ़ी, 59.शमिसपुर, 60.शाहपुर, 61.सुजावलपुर, 62.सुकटी खेड़ा, 63.सुनहरपुरा, 64.हथौड़ा खेड़ा, 65.हथौड़ा वन।

9. निधिपुर
101 राजस्व ग्रामांे का 107629 एकड़ क्षेत्रफलवाले निधिपुर के उत्तर में गंगा, पूर्व में फरूखाबाद जिला, दक्षिण में पटियाली व सहावर तथा पश्चिम में उलाई परगना हैं।
परगने के गांव
1.अजीजपुर, 2.असदगढ़, 3.अहमद देवनगर, 4.इन्दाजसनपुर, 5.इमामुद्दीनपुर, 6.उस्मानपुर,    7.उलाईखेड़ा,  8.करीमनगर, 9.कादरगंज खाम, 10.कादरगंज पुख्ता, 11.किलौनी, 12.कुलीजपुर, 13.किसौल, 14.कैथोला, 15.कोनी, 16.खजुरिया, 17.खड़ुइया, 18.खरगपुर, 19.खलौरा, 20.खिजरपुर, 21.खेड़ा भाट, 22.गजौरा, 23.गढ़ी रामपुर तरफ डूंगर, 24.गढ़ी रामपुर तरफ चंद्रभान, 25.गणेशपुर, 26.घबरा, 27.चकरपुर, 28.चिलौली भाट, 29.चिलौली खाती, 30.जघई, 31.जार्रा, 32.जारी, 33.जिलौल,
34.तरसी, 35.दमपुरा, 36.देवकली, 37.धनसिंहपुर, 38.नगला बैरू, 39.नगला डामर, 40.नगला नथा, 41.नगला बजीर, 42.नरदोली खाम, 43.नरदोली पुख्ता, 44.नबाबगंज नगरिया, 45.नागर कंचनपुर, 46.नादरमई, 47.नूरपुर, 48.नौरथा, 49.न्यौली फतुहाबाद, 50.फरसोती, 51.पीतमनगर हरोड़ा, 52.पीरनगर, 53.बंगशनगर, 54.बमनपुरा, 55.बहरोजपुरा, 56.बहुइया, 57.बहोरा, 58.बढ़ोला, 59.बरोरा, 60.बस्तोली ब्राहमनपुर, 61.अलीपुर मकरी, 62.भीकमपुर, 63.महमूदपुर, 64.म्यूनी, 65.म्यासुर, 66.म्याऊ, 67.मिहोली, 68.मिहोला, 69.मूंजखेड़ा, 70.रफातपुर ढ़लाई, 71.रसूलपुर अरोरा,
72.रनेठी, 73.राजेपुर कुर्रा पुख्ता, 74.राजेपुर कुर्रा खाम, 75.रानी डामर, 76.रिकैरा, 77.रिजोला खुर्द, 78.रिजोला राजा, 79.लाखापुर, 80.लभेड़, 81.लघौली, 82.शमसपुर, 83.शहबाजपुर खाम, 84.शहबाजपुर पुख्ता, 85.सलावतगनर, 86.सनौड़ी खास, 87.सनौड़ी सिगमन खाम, 88.सिनौड़ी सिगमन पुख्ता, 89.सिकन्दरपुर वैश्य, 90.सिकन्दरपुर खुर्द, 91.सिकन्दरपुर ढाव, 92.सुन्नगढ़ी, 93.सुन्दरमन, 94.सुल्तानपुर, 95.हद्दू कटरी, 96.हद्दू हाफिजगंज, 97.हिम्मतनगर बझेरा पश्चिम, 98.हिम्मतनगर बझेरा पूर्व।


pargana of etah-2

प्रशासनिक इकाई के रूप में परगना
19वीं सदी की औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व किसी भी शासन की आय का प्रमुख आधार उसका भूराजस्व ही होता था। अतः स्वाभाविक था कि शासन इस भूराजस्व की उगाही के लिए एक ऐसी पद्वति का विकास करते जिससे उनके राजस्व-प्राप्ति के प्रयास सुसंगत व सुव्यवस्थित हों। प्राचीन भारतीय नरेशों द्वारा इस भूराजस्व को पाने के लिए जिस भुक्ति या विषय नामक प्रशासनिक इकाई की स्थापना की थी कमोवेश उसी का मध्यकालीन स्वरूप परगना है।
सौभाग्य से इतिहास में परगना शब्द का पहला प्रयोग अपने जनपद के मारहरा के लिए अलाउद्दीन खिलजी काल का मिलता है। अनुश्रुति है कि मारहरा के तत्कालीन नरेश राजा स्वरूपसिंह द्वारा स्थापित स्वरूपगंज सहित उनके राज्य पर अधिकार कर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र बनाते हुए इसे परगना नाम दिया।
परगना नामक प्रशासनिक इकाई के प्रयोग के सर्वाधिक असंदिग्ध अभिलेख बादशाह अकबर के समय लिखी गयी ‘आईन-ए-अकबरी’ में मिलते हैं। इसके अनुसार  जनपदीय क्षेत्र का जलेसर परगना आगरा सूबा के अंतर्गत सरकार आगरा का भाग था यहां एक ईंटों का किला भी था। इस काल में यहां कृषियोग्य क्षेत्र 904733 बीघा था जो अकबर को 6835400 दाम राजस्व देता था। जलेसर से 400 घुडसवार तथा 5000 पैदल सैनिक भी दिये जाते थे। जबकि जिले का पटियाली, सकीट, सहावर, सिकन्दरपुर अतरजी परगना सरकार कन्नौज का भाग था। इसमें पटियाली 158634 बीघा का 158634 दाम देनेवाला महाल था जो 100 घुड़सवार तथा 2000 पैदल सैनिकों की आपूर्ति करता था। वहीं सकीट 132855 बीघा का 3230752 दाम का परगना था जो 100 घुड़सवार तथा 3000 पैदल सैनिकों की आपूर्ति करता था।
इस काल में परगना सहावर 20 घुड़सवार व 500 पैदल सैनिक देता था जबकि सिकन्दरपुर अतरेजी 5 सशस़्त्र तथा 150 पैदल सैनिक देता था। ये दोनों परगने उस काल में 114658 बाीघा के अकबर को 521867 दाम के परगने थे। दोनों को बाद में सहावर-करसाना नाम से एक कर दिया गया। जिले का सौंहार परगना इस काल में बरना का भाग था।
 मारहरा, बिलराम, सोरों, पचलाना व सिढ़पुरा परगने सरकार कोल के अंतर्गत मारहरा दस्तूर के अंतर्गत थे तो जिले का 253120 बीधा कृषि भूमि का फैजपुर बदरिया परगना महल सहसवान के अंतर्गत बदायूं सरकार व दिल्ली सूबे का अंग थे।
बिलराम परगने पर इस काल में अफगानों व चैहानों का अधिकार था। यहां से अकबर को 50 घुड़सवार तथा 1000 पैदल सैनिक दिए जाते थे। 111878 बीघा का यह परगना 2131765 दाम राजस्व देता था। पचलाना 39128 बीघा का 624825 दाम राजस्व का परगना था। यहां से 200 घुड़सवार व 5000 पैदल सैनिकों की आपूर्ति होती थी। सोरों इसकाल में राजपूत व सैयदों के अधिकार मंे था। यहां से 20 घोड़े तथा 400 पैदल दिये जाते थे। इसका कृषिक्षेत्र 40656 बीघा था जो 875016दाम राजस्व देता था।
इस काल में सिढ़पुरा 70567 बीघा कृषि भूमि का 989458 दाम का शर्ती राजपूतों के अधिकार का परगना था। जिले का सर्वाधिक बड़ा महाल मारहरा था। राजपूतों के अधिकार क्षेत्र का 205537 बीघा कृषि क्षेत्र का यह परगना 3679582 दाम राजस्व देने के साथ 200 घोडे़ व 2000 पैदल सैनिक भेजता था।
इस सूची में आजमनगर के स्थान पर शम्शाबाद परगना का नाम है। 1909 के जिला गजेटियर के अनुसार इसी का विभाजन कर अठारवीं सदी में आजमनगर नाम से एक नये परगने का सृजन किया गया है। इस सूची में उलाई व निधिपुर परगनों के नाम नहीं हैं। प्रतीत होता है कि या तो इन परगनों का सृजन ही बाद में हुआ है, अथवा इनके तत्कालीन नाम भिन्न थे।

एटा जिला के निर्माण की कहानी
1757ई0 में हुए प्लासी युद्ध के बाद बंगाल का राज्य हथिया लेने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों ने अपनी हड़प नीति को और बढ़ावा देने के लिए कूटनीतिक प्रयत्न करने आरम्भ कर दिये। इन प्रयत्नों के तहत सबसे पहले उन्होंने अवध को दिल्ली की बादशाहत से पृथक कर उसे स्वतंत्र बादशाह की मान्यता दी। फिर उसे राज्य वृद्धि का लालच देकर रूहेलों की शक्ति कम करने के काम में लगा दिया। इस भिड़त में अवध ने मराठाओं व अंगरेजी सेनाओं का भी सहयोग लिया तथा फरूखाबाद के तत्कालीन बंगश नबाव को दबाकर उससे युद्ध-व्यय के नाम पर उसके करीब 31 परगने छीन अपने राज्य में मिला लिये। साथ ही नबाव फरूखाबाद को मराठा सेनाओं को अवध द्वारा दी जानेवाली राशि भी देने को सहमत होना पड़ा।
इस व्यवस्था का परिणाम हुआ कि मराठा जिले के जलेसर-मारहरा परगनों से लेकर इस क्षेत्र के समस्त भूभाग के स्वामी बन गये। इधर इस व्यवस्था से अपने लिए कोई लाभ न होता देख अंगरेजों ने अपने सैन्य-व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए अवध द्वारा नबाव फरूखाबाद से छीने भूभाग लेने के बाद उन्होंने फरूखाबाद के तत्कालीन बंगश नबाव इमदाद हुसैन पर एक निश्चित पेंशन राशि के एवज में राज्य को ईस्ट इंडिया कंपनी को सोंपने का दबाव डाला।
नाबालिग नबाव इमदाद हुसैन द्वारा अंगरेजों के इस प्रस्ताव को अस्वीकार किये जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड बंेलेजली अपने भाई हेनरी बेलेजली को इस काम में लगाया। इसने कूटनीति, धोखाधड़ी का सहारा ले पहले नबाव के अधिकारियों को दबाव में लिया। फिर 4 जून 1802 में बरेली में नबाव इमदाद हुसैन को अपने तथा अपने उत्तराधिकारियों के लिए 1 लाख 8 हजार वार्षिक पेंशन स्वीकार कर अपने राज्य को कंपनी को सौंपने को बाध्य कर दिया।
नबाव का राज्य प्राप्त हो जाने के बाद भी इस क्षेत्र में भौगोलिक रूप से अंगरेजों को कोई खास लाभ नहीं हुआ। कारण, इटावा से लेकर कोल(अलीगढ़) तक के यहां के परगने व्यवहारिक रूप से बंगश या अवध के नबाव के अधीन नहीं मराठाओं के अधिकार में थे तथा उनके प्रतिनिधि एटा के अलीगंज तथा वर्तमान कन्नौज जिला मुख्यालय पर रह इन क्षेत्रों की व्यवस्थाएं संभालते थे। वहीं कोल में सिंधिया की फ्रांसीसी सेनापति पेरां के अधीन एक आधुनिक सेना मौजूद थी जिसके व्यय के लिए जलेसर से सहारनपुर तक के परगने पेरां के अधीन किये गये थे।
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए अंगरेजी सेना के सेनापति लार्ड लेक ने 1802 में एक सैन्य अभियान किया। इसका प्रत्यक्ष उद्देश्य तो दिल्ली के बादशाह को पुनः दिल्ली के सिंहासन पर आरूढ़ करना था किन्तु छिपा उद्देश्य इस क्षेत्र से मराठा प्रभाव समाप्त करना था।
इस अभियान में दौलतराव सिंधिया के फ्रांसीसी सेनापति पेरां के विश्वासघात के कारण मराठाओं को खासी क्षति उठानी पड़ी। उनके ये समस्त क्षेत्र अंगरेजों के अधिकार में आ गये।
1804ई में अंगरेजों द्वारा इस भूभाग पर अधिकार कर लेने के पश्चात यहां की भूराजस्व प्रणाली को बदले बिना इसे किसी डिस्ट्रिक्ट के हवाले कर तथा वहां कलेक्टर(शुद्ध अर्थ संग्राहक/बसूली करनेवाला) नियुक्त कर इस क्षेत्र के भूराजस्व की प्राप्ति के प्रयास किये।
इसके अंतर्गत सबसे पहले उन्होंने इस समस्त भूभाग को इटावा, फरूखाबाद व इटावा के जिलों में शामिल कर कासगंज के छाबनी गांव में एक सैन्य छावनी स्थापित की। किन्तु इसे 1804 में वहां के विद्रोही जमींदारों ने जला डाला। इसी वर्ष 1 नबम्वर को दूसरे मराठा सेनापति यशवंतराव होल्कर ने इस क्षेत्र को विजित करने हेतु एक अभियान किया। अंगरेजी फौजों से कई स्थानों पर छिटपुट झड़पों के बाद कादरगंज में लार्ड लेक व होल्कर के मध्य 17 नबम्वर को हुए निर्णायक युद्ध में होल्कर की पराजय हुई और उसे यहां से हटना पड़ा।
इस क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार स्थापित कर लेने के बाद 1811 में पटियाली में एक यूरोपियन अधिकारी को पदस्थ कर भूराजस्व की बसूली के प्रयास किये। 1816 मंे पटियाली हैडक्वार्टर को सिढ़पुरा स्थापित किया गया तथा कमिश्नर्स बोर्ड के सहायक सेक्रेटरी कालबर्ट को यहां का अधिकारी बनाया गया।
1816 में ही बिलराम, फैजपुर बदरिया, व सोरों के परगने तथा आधा मारहरा का भाग इटावा से हस्तांतरण कर अलीगंज में मिला अलीगंज को तहसील बनाया गया । जबकि एटा, सकीट व मारहरा का शेष भाग इटावा का ही अंग रहे।
1824 में इटावा के कुछ भूभाग मैनपुरी के कलक्ट्रेट तथा इटावा, बेला व सिढ़पुरा के उप कलक्ट्रेट में विभाजित किये गये। इस व्यवस्था में सिढ़पुरा में जिले का प्रायः आधा भाग शामिल था। अंगरेज अधिकारी हर्बट को यहां का डिप्टी कलक्टर बनाया गया। इन्होंने स्वेटन होम से सिढ़पुरा व सहावर तथा कलक्टर इटावा से एटा व सकीट प्राप्त किये। हर्बट के उपरान्त टर्नर तथा इसके बाद 1826 में न्यूहम आये।
कालांतर में बिलराम, फैजपुर बदरिया, सोरों तथा आधा मारहरा मिलाकर कासगंज तहसील बनाई गयी तथा इसे वर्तमान बदायूं जिले के पूर्ववर्ती सहसवान जिले से जोड़ा गया। इस समय हर्बट सिढ़पुरा का अंगरेज अधिकारी था।
स्वेटन होम के सिढ़पुरा के डिप्टी कलक्टर बनने के बाद सिढ़पुरा व सहावर परगनों के अतरिक्त इटावा कलेक्टर से एटा-सकीट व आधा मारहरा प्राप्त कर इन्हें भी स्वेटन होम को सोंप दिया गया। पर इसने सिढ़पुरा की जगह पुनः पटियाली को ही अपना मुख्यालय बना लिया।
1827 में बिलराम, फैजपुर बदरिया, सोरों व आधा मारहरा परगने के भूभागों को सहसवान जिले से हटाकर सिढ़पुरा से सम्बद्ध कर दिया गया किन्तु प्रशासनिक मुख्यालय को पटियाली से हटाकर फतेहगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया।
1828 में इस क्षेत्र के अधिकारियों को मिले विशेष मजिस्ट्रेटी अधिकार बापस ले लिये गये किन्तु 1837 तक यह क्षेत्र मालगुजारी के लिए पृथक बना रहा। जबकि पटियाली को फरूखाबाद की आजमनगर तहसील में मिला दिया गया। सहसवान से प्राप्त परगने पुनः उसी को लौटाए गये तथा इटावा से प्राप्त परगने मैनपुरी को सोंप दिये गये। पर यह व्यवस्था भी कारगर न रही।
26 अप्रेल 1845 में पुनः एक नयी व्यवस्था बनाकर बेनयार्ड को इस क्षेत्र का ज्वाइंट मजिस्ट्रेट व डिप्टी कलक्टर बनाया गया। बरना, आजमनगर व पटियाली को मिलाकर बनाई गयी फरूखाबाद जिले की आजमनगर तहसील, सकीट, सिढ़पुरा, सहावर-करसाना, एटा-सकीट व सोंहार परगनों को मिलाकर बनाई गयी सकीट तहसील तथा बिलराम, सोरों, फैजपुर बदरिया, उलाई व आधा मारहरा को मिलाकर कासगंज तहसील को इसके अधीन किया गया।
1847 में डिप्टी कलक्टर को स्वाधीन न रख इसे सम्बन्धि जिलों के कलक्टर के अधीन कर दिया गया। पर व्यवस्था के प्रभावी न हो पाने के कारण 1850 में इसे पुनः स्वाधीन कर दिया गया।
यह व्यवस्था भी जब कारगर सिद्ध न हुई तो 1852 के अंत में डिप्टी कलक्टर व ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के रूप में एफ.ओ. मेयन की नियुक्ति की गयी। इसने प्रशासनिक हैडक्वार्टर को पटियाली से हटा जीटी रोड स्थित एटा ग्राम को बनाया। अंगरेजों ने भी 1854 में एटा को पूर्ण जिला बनाकर,अंगरेजों ने एफओ मेयन को ही यहां का पहला कलक्टर बना दिया।
1856 में ही मारहरा व पचलाना को अलीगढ़ से तथा 1879 में मथुरा से जलेसर परगना हटा इस नवसृजित जिले का भाग बनाने के पश्चात एटा जिले का जो मानचित्र सामने आया वह वर्ष 2008 तक यथावत बना रहा। तत्कालीन एटा जिले में जलेसर परगना को पृथक तहसील के रूप में सम्मिलित किया गया जबकि सकीट, सोंहार व मारहरा परगने एटा तहसील का भूभाग बने। वहीं आजमनगर, बरना, पटियाली व निधिपुर परगनों को मिलाकर अलीगंज तहसील को बनाया गया। बिलराम, पचलाना, फैजपुर बदरिया, सोरों, उलाई, सहावर व सिढ़पुरा कासगंज तहसील का भाग रहे। वर्ष 1982 में पटियाली को नया तहसील मुख्यालय बनाकर उसमें पटियाली, निधिपुर व सिढ़पुरा के परगने सम्मिलित कर दिये गये।
15 अप्रेल 2008 को तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा कासगंज को नया जिला बनाने के बाद यह व्यवस्था बदली है। अब 6 परगने एटा जिले का, जबकि 9 परगने कासगंज जिले का भाग हैं।
एटा-कासगंज जिले के परगना
तत्कालीन एटा जिले में 15 परगने सम्मिलित किये गये थे। इनमें से- मारहरा, सकीट, सोंहार, आजमनगर, बरना व जलेसर, कुल 6 परगना अब एटा जिले का भूभाग हैं।
27.18 से 27.47 उत्तरी अक्षांश 78.11 से 79.17 पूर्वीदेशान्तर के मध्य अवस्थित जिले का क्षेत्रफल 2452.92 वर्गकिमी है जिनमें 855 आबाद तथा 28 गैरआबाद- कुल 883 गांव हैं। जबकि बिलराम, पचलाना, उलाई, सोरों, फैजपुर बदरिया, सहावर, सिढ़पुरा, पटियाली व निधिपुर, कुल 9 परगने कासगंज जिले के भूभाग हैं।

एटा जिले के परगने तथा उनके अंतर्गत गांव

1- एटा तहसील
27.20 से 27.47 उत्तरी अक्षंश तथा 78.25. से 78.56 पूर्वी देशान्तर के मध्य फैली एटा तहसील की दक्षिणी सीमा पर मैनपुरी व फिरोजाबाद जिले, पश्चिमी सीमा पर हाथरस जिला, उत्तरी सीमापर कासगंज जिला हैं। तहसील का क्षेत्रफल 1233.05 वर्गकिमी है। तहसील में 4 विकासखंड हैं। इनमें मारहरा विकासखंड का क्षेत्रफल 198.18 वर्गकिमी, निधौलीकलां विकासखंड का 348.74, शीतलपुर का 312.05 वर्गकिमी तथा सकीट का 392.52 वर्गकिमी क्षेत्रफल है। तहसील में सोंहार, सकीट व मारहरा- 3 परगने हैं। एटा तहसील में कोतवाली नगर, कोतवाली देहात, सकीट, मलावन, बागवाला, सकीट, रिजोर, निधौलीकलां, पिलुआ, मिरहची, मारहरा- कुल 10 पुलिस थाने तथा 1 महिला थाना हैं। तहसील शीतलपुर (एटा), सकीट, मारहरा तथा निधौलीकलां- 4 विकासखंडों में विभाजित है।

1. सोंहार
एटा तहसील का यह परगना महज 36 राजस्व ग्रामों का परगना है। इसके उत्तर में सिढ़पुरा, पूर्व में बरना, दक्षिण में मैनपुरी जिला तथा पश्चिम में सकीट परगने के भूभाग हैं। यह काली नदी के दायें तट पर स्थित है।
1872-73 के एटा गजेटियर के अनुसार इस परगने का कुल क्षेत्रफल 21926 एकड़ है। परगना के मलावन गांव में पुलिस थाना है।
सोंहार परगना संभवतः सकीट के शासकों से सम्बद्ध रहने के कारण यूं तो इतिहास में महत्वहीन रहा है किन्तु 1488-89 के कालखंड में उस समय चर्चा का विषय रहा है जब इटावा से लौट रहा तत्कालीन दिल्ली सुल्तान बहलोल लोदी सुल्तनत के विवरणों के अनुसार लू लगने से बीमार होने के कारण, जबकि सकीट के चैहानों के अनुसार मलगांव में चैहानों से हुए युद्ध में घायल होने के कारण सोंहार में रूका तथा यहीं उसकी मृत्यु हुई।
बहलोल की मृत्यु के बाद सोंहार में ही उसके सरदार नये सुल्तान के चयन के लिए एकत्रित हुए जहां खासे वाद-विवाद के अनुसार सिकन्दर लोदी का नये सुल्तान के रूप में चयन किया गया। सुल्तान बनने के बाद सिकन्दर लोदी ने सोंहार के समीप किन्तु बरना परगना में स्थित कठिंगरा(जहां इस काल में शाही शिकारगाह कुश्के-फिरोजी था) मंे अपना राज्यारोहण कराया। वैसे सोंहार स्वयं में काफी प्राचीन गांव रहा है। कवि भीमदेव बघेला द्वारा लिखित ‘चालुक्य वंस प्रदीप’ के अनुसार सौंहार की स्थापना सोरों/अतरंजीखेड़ा के चालुक्य शासक सोनमति द्वारा की गयी है।
परगने के गांव
सोंहार परगने में जिले के 1.अकबरपुर, 2.अयार, 3.अम्बरपुर, 4.कंगरौली, 5.कुंवरपुर नगरिया, 6.गढि़या सीलम, 7.जैतपुर, 8.जमालपुर, 9.जलालपुर सांथल, 10.जलालपुर पलरा, 11.ज्यौरी, 12.दतौली, 13.दुनइया, 14.दासपुर, 15.देवपुरा, 16.नूरपुर, 17.नगमई, 18.नगला हुरिया, 19.नगला रंजन, 20.नगरिया, 21.नवादा, 22.नरौरी, 23.पचलहरा, 24.फतेहपुरा, 25.विर्सिंगपुर, 26.मैनाठेर, 27.मलावन, 28.मुहम्मदपुर, 29.पूसाखेड़ा, 30.राजपुर, 31.रामनगर, 32.रसूलपुर, 33.लाखापुर, 34.सोन्सा, 35.सोंहार व 36.हरचंदपुर गांव हैं।
इनमें मैनाठेर, सोन्सा व सोंहार ऐतिहासिक महत्व के गांव हैं।

2. मारहरा
एटा तहसील का यह परगना जिले का पहला परगना है जिसके विवरण अलाउद्दीन खिलजी(1295-1315) के शासनकाल से मिलते हैं। हालांकि वर्तमान स्वरूप में कुछ बदलाव आया है किन्तु करीब-करीब समस्त वर्तमान क्षेत्र आरम्भ से इस परगने का भूभाग रहा है। वर्तमान में इस परगने मंे 169 राजस्व गांव हैं। जिले के मिरहची, मारहरा, निधौलीकलां तथा पिलुआ थानाक्षेत्र मारहरा परगने में ही हैं। साथ ही परगने का कुछ भाग कोतवाली देहात थानाक्षेत्र के अंतर्गत भी आता है।
अकबर के राज्यकाल में यह दस्तूर का मुख्यालय रहा है। फर्रूखशियर द्वारा 1713 में जहांदारशाह के वध के बाद इसे मुजफ्फरनगर के बराह के सैयदों की जागीर में दिया था। इसने राजपूतांे के नियन्त्रण से इसे अपने अधिकार में लिया था।
1738 मं इस परगने के 117 गांव तथा नीलगिरां पट्टी नबाव फरूखाबाद के अधिकार में आयी जबकि भैरों पट्टी सहित 62 गांव अवध के नबाव अब्दुल मंसूरखान सफदरजंग के अधिकार में माने गये। अवध के भाग को ‘किस्मत सानी’ कहा गया जबकि फरूखाबाद का भूभाग ‘किस्मत अब्बल’ कहलाया।
फरूखाबाद के बंगश नबाव की मौत के बाद 1748 में किस्मत अब्बल वाला भाग भी अवध के राज्य का भाग बना। यहां उसका वजीर नवलराय प्रबंधक बना। इसे अहमदखां ने मारा। यह घटनाक्रम अवध के नबाव को मारहरा लाने का कारण बना। सफदरजंग ने मारहरा से ही फरूखाबाद के बंगश नबाव के विरूद्ध अभियान किया।
1751 में बंगश-सफदर में हुए समझौते में मराठा सेनाओं का व्यय फरूखाबाद द्वारा दिए जाने की संधि के चलते यह भूभाग मराठाओं के अधिकार में आया किन्तु कुछ ही समय बाद इसे बंगश नबाव अहमदखां द्वारा मराठाओं से वापस ले लिया गया। 1772 मं यह क्षेत्र फिर अवध के अधिकार में आ गया जहां यह 1801 तक रहा। 1802 में किस्मत सानी क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवध नबाव से समझौते में ले लिया गया। 1804 ई0 में हुए लार्ड लेक के दिल्ली अभियान के समय यह पूरा क्षेत्र ब्रिटिश अधिपत्य में आ गया।
इस परगने के उत्तर में बिलराम, पश्चिम में अलीगढ व मथरा जिला, दक्षिण में परगना मुस्तफाबाद(पहले मैनपुरी तथा अब फिरोजाबाद का भाग), पूर्व में परगना एटा-सकीट तथा सहावर-करसाना हैं।
1872-73 के ब्रिटिश गजेटियर के अनुसार इस परगने का क्षेत्रफल 122778एकड़ है।
इस परगने की एक खास बात यह भी है कि जिस मारहरा नाम से यह परगना है तथा भौगोलिक धरातल पर एक शहर भी है उस मारहरा के नाम से पूरे परगने में कोई राजस्व गांव नहीं है।
परगने के गांव
1.अखतौली, 2.नयाबांस, 3.अचलपुर, 4.अढ़ापुरा, 5.अब्दुल्लापुर देहमाफी, 6.अमृतपुर, 7.अमीरपुर, 8.आहरमई, 9.अहमदनगर बमनोई, 10.आजमपुर, 11.इस्लामपुर पीली, 12.अमरपुर भूडि़या, 13.ओरनी, 14.कमरैटा, 15.कुबादगंज, 16करूआमई, 17.कल्याणपुर लालपुर, 18.काजीखेड़ा, 19.करीमपुर माफी, 20.किशनपुर, 21.कुंवरपुर चंद्रभानपुर, 22.कुटैना माफी, 23.खकरई, 24.खंगारपुर दौलतपुर, 25खेड़ा, 26.ख्वाजगीपुर, 27.गदनपुर, 28.गढ़वाला, 29.गहराना, 30.गहेतू, 31.गुढ़ा, 32.गोकुलपुर, 33.गोकनी, 34.गोबरा, 35.गोशलपुर, 36.रफीपुर चाठी,
37.जिटौली, 38.जारथल, 39.जिन्हैरा, 40.जोगामई, 41.झिनबार, 42.डिंडौली, 43.तातारपुर अब्बल, 44.तातारपुर दोयम, 45.तातारपुर माफी, 46.तरबपुर माफी, 47.त्रिलोकपुर, 48.दतेई, 49.दस्तमपुर, 50.धनिगा, 51.धरपसी, 52.धिरामई पांच बस्ता, 53.धिरामई पौने दस बस्ता, 54.धिरामई सवा पांच बस्ता, 55.धौलेश्वर, 56.नगला किमिया, 57.नगला ख्याली, 58.नगला खिल्ली, 59.नगला पुन्नी, 60.नगला फकीर, 61.नगला बरी, 62.नगला बंदी, 63.नगला भूरा, 64.नगला टूली, 65.नगला संत, 66.नगला श्याम, 67.नवीनगर, 68.नरहोली, 69.नाडर, 70.नावली, 71.निजामपुर, 72.निधौलीकलां, 73.नौजरपुर, 74.पचपेड़ा, 75.परतापपुर सानी, 76.परतापपुर राजा, 77.पलिया, 78.पिथनपुर, 79.पिदौरा, 80.पिपहरा, 81.पृथ्वीपुर, 82.पिलुआ, 83.पिवारी, 84.पैसई,
85.फतेहपुर खालसा, 86.फतेहपुर माफी, 87.फरीदपुर, 88.फीरोजपुर सिलौनी, 89.बड़ागांव, 90.बढ़ोली, 91.बबुआ, 92.बरई, 93.बरिगवां, 94.बंथल कुतकपुर, 95.बसुन्धरा, 96.बावसा, 97.बिदिरिका, 98.बीरपुर, 99.बुढ़ैना, 100.बुरहनाबाद, 101.बुढैरा, 102.भटपुरा, 103.भदुआ, 104.भड़ैरा, 105.भदवास, 106.भुरगवां, 107.भोजपुर, 108.भोपतपुर, 109.मंगरौली, 110.मझराऊ, 111.मनौरा, 112.मरगांया, 113.महमूदपुर नगरिया, 114.मुहारा, 115.मिरहची, 116.मीरापुर, 117.मुखरना, 118.मुनब्बरपुर, 119.मुहम्मदी, 120.मुईउद्दीनपुर, 121.मुमिंयाखेड़ा, 122.मेहिनी शोरा, 123.यादगारपुर,
124.रामपुर 125.रफतनगर सेंथरा, 126.रमण्डपुरा, 127.रसूलपुर गढ़ौली, 128.रसीदपुर खालसा, 129.रसीदपुर माफी, 130.रामनगर, 131.रामई टोडरशाह, 132.रामई हेतमशाह, 133.रूस्तमगढ़, 134.लालपुर देहमाफी, 135.लहरा, 136.लोधामई, 137.समसपुर, 138.श्यौराई, 139.शहबाजपुर, 140.सोनौठ, 141.सरनऊ, 142.सिंधावली, 143.सिरसाटिप्पू, 144.सिरसाबदन, 145.सराय अहमदखां, 146.सराय जरेलिया, 147.सराय मूलेखां, 148.सुलहपुर माफी, 149.सामन्तखेड़ा, 150.साऊसपुर, 151.सिडरई, 152.सुन्ना सिहोरी, 153.सुपैथी, 154.सोंगरा, 155.सोरखा, 156.सूरतपुर माफी, 157.सीय, 158.हजर्रापुर, 159.हजरतपुर करनपुर, 160.हरसिंगपुर, 161.हुसैनपुर ककराला, 162.हार नीलगिरां, 163.हिम्मतपुर, 164.हयातपुर माफी, 165.हयातपुर माफी, 166.हिम्मतनगर बझेरा, 167.हुसैनपुर, 168.हुसैन चक, 169.होर्ची।

3. सकीट
उत्तर-पश्चिम में मारहरा परगना, दक्षिण-पूर्व में मैनपुरी जिला, उत्तर व उत्तर-पूर्व में सहावर-करसाना परगना व सिढ़पुरा, पूर्व में सिढ़पुरा तथा दक्षिण में मैनपुरी जिले से घिरा यह परगना जिले का सबसे बड़ा परगना है। इस परगना में 285 राजस्व ग्राम हैं। इस परगना में कोतवाली नगर व कोतवाली देहात थाना एटा नगर में स्थित हैं। जबकि सकीट, रिजोर तथा बागवाला पुलिस थाने सम्बन्धित गांवों में हैं। जिले का महिला थाना भी एटा नगर में है।
1857 से पूर्व इस परगना के एटा क्षेत्र के भूभाग का स्वामित्व एटा के अंतिम नरेश महाराजा डम्बर सिंह व उनके पूर्वजों तथा सकीट के कुछ भूभाग का स्वामित्व रिजोर नरेश खुशालसिंह व उनके वंशजों के पास था। किन्तु एटा नरेश तथा नाबालिग रिजोर नरेश के सर्वराकर के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के चलते दोनों रियासतें अंग्रेजी कोप का शिकार बनी। एटा के राजा डम्बर सिंह की तो उनकी पत्नी के गुजारे के लिए 7 गांव छोड़कर उनकी करीब 2.5 लाख वार्षिक राजस्व की सम्पूर्ण रियासत ही जब्त कर ली गयी जबकि रिजोर नरेश को उनकी नाबालिगी का लाभ देते हुए उनसे राजा का खिताब तथा रियासत का कुछ भाग छीना गया था।


परगने के गांव
1.अचलपुर, 2.अचलपुर, 3.अंगदपुर, 4.अंतरामपुर, 5.अरथरा, 6.असरौली, 7.अहमदाबाद, 8.अहमदनगर, 9.आसपुर, 10.इब्राहीमपुर नगरिया, 11.इशारा पूर्वी, 12.इशारा पछांई, 13.उद्दनपृर 14.उलेरू, 15.उमरायपुर अरथरा, 16.उमरायपुर फफोतू, 17.उमरायपुर बीगौर, 18.उमरायपुर रिजोर, 19.उम्मेदपुर रिजोर, 20.उम्मेदपुर सेना, 21.एटा 22.औन, 23.ककरावली, 24.कदमपुर, 25.कबार, 26.कबीरपुर मौजा पहरा, 27.कम्मापुर, 28.कमालपुर मई, 29.कालेपुर(कमालपुर), 30.कमालपुर बरौली, 31.कंसुरी, 32.कमसान, 33.करतला, 34.करमचंदपुर, 35.करीमपुर, 36.कुल्ला हबीबपुर, 37.कसैटी, 38.कासिमपुर, 39.कासौन निजामपुर, 40.किशनपुर कबार, 41.किशनपुर लोया, 42.किशनगढ़, 43.कीलरमंऊ, 44.कुनैठा ताल्लुका बरौली, 45.कुतकपुर कुंदनपुर, 46.कुतकपुर मजरा ओंन, 48.कुनावली, 49.कुरीना दौलतपुर, 50.कौंची, 51.कोयना, 52.कुसाड़ी, 53.कठौली,
54.खुटियाना, 55.खड़ौआ, 56.खरगपुर, 57.खुशालगढ़, 58.खेरिया, 59.खेडि़या मजरा औन, 60.गढि़या कौंची, 61.गढि़या यादगारपुर, 62.गढ़ी ताल्लुका बरौली, 63.गिरौरा, 64.गुलरिया, 65.गुमानपुर, 66.गाजीपुर पहोर, 67.घुटिलई, 68.घुमरिया, 69.घिलउआ, 70.चकचैंधा, 71.चक गढि़या, 72.चक रामनगर, 73.चपरई सिकन्दरपुर, 74.चमकरी, 75.चाचरमउ, 76.चांदपुर जिन्दाहार, 77.चांदपुर लोकसपुर, 78.चांदपुर सकीट, 79.चिलमापुर, 80.चिन्तापुर, 81.चिलासनी, 82.चुरैथा, 83.चैंचा वनगांव, 84.छछैना, 85.छितौनी, 86.जगतपुर, 87.जंगलपुर, 88.कमसान, 89.जार, 90.जावड़ा, 91.जावड़ा, 92.जवाहरपुर बरौली, 93.जवाहरपुर अर्थरा, 94.जंहागीराबाद, 95.जिरसिमी, 96.जीसखपुर एटा, 97.जीसखपुर सानी, 98.जीसखपुर (नगला बरी), 99.
100.डांडा, 101.लालडुडवारा, 102डूंगरपुर, 103.तालिबपुर, खेडि़या, 104.ताहरपुर बरौली, 105.थरौली, 106.दत्तपुर रिजोर, 107.दत्तपुर कुंजपुर, 108.दलपुर 109.दलेलपुर, 110.दूल्हापुर, 111.धारिकपुर अर्थरा, 112. 113.धारिकपुर लोहा, 114.धुआई, 115.नरहरा, 116.नगला अन्नी, 117.नगला बाचा, 118.नगला बिके, 119.नगला भजुआ, 120.नगला वीरसहाय, 121.नगला पवल, 122.नगला छीतली, 123.नगला जगरूप, 124.नगला धीमर, 125.नगला रंजी, 126.नगला फरीद, 127.नगला काजी, 128.नगला किसी, 129.नगला खंगार, 130.नगला खोकर, 131.नगला गलू, 132.नगला निरोती, 133.नगला हरीकिशनपुर 134नगला हम्मीर, 135.नन्दपुर खोंडरा,
136.नंदपुर नगला भजुआ, 137.नेहचलपुर अर्थरा, 138.नेहचलपुर लोया, 139.नाजिरपुर, 140.नासिरपुर, 141.निगोह हसनपुर, 142.निधौली खुर्द, 143.न्यौराई, 144.नेकपुर, 145.नैनपुर, 146.पिपहरा, 147.परतापपुर, 148.पृथ्वीराजपुर, 149.पवांस, 150.पूठ, 151.पुरा, 152.पुरांव, पहरा मजरा कबीरपुर, पहरई, पीपलखेडि़या, 157.फफोतू, 158.फतेहपुर, 159.बैसखेरिया, 160.बीगौर, 161.बैंदुला, 162.बहलोलपुर, 163.बारथर, 164.बाबरपुर, 165.बाजीदपुर बरौली, 166.बागवाला, 167.बाकराबाद, 168.बाबली, 169.वाहनपुर, 170.बबरौती नसीरपुर, 171.बिजौरी, 172.वक्शीपुर खास, 173.वक्शीपुर रिजोर, 174.बनहरा मजरा करतला, 175.बमनई, 176.बहादुरपुर, 177.बहादुरगढ़, 178.बरथरी, 179.बराखेड़ा, 180.बरौली,
181.बिक्रमपुर, 182.बिधीखेडि़या, 183.ब्रिंदावन, 184.बिरामपुर एटा 185.बिरामपुर सकीट, 186.भागपुर बरौली, 187.भटमई, 188.भदौं, 189.भगवन्तपुर, 190.भगीपुर, 191.भरतोली, 192.भूपालपुर, 193.भोगपुर, 194.मऊ ताल्लुका बरौली, 195.मधूपुरा, 196.मनसुखपुर, 197.मंसूरनगर, 198.मनूपुर, 199.मरथरा भगवानदास1, 200.मरथरा भगवानदास2, 201.मरजादपुर, 202.मिलिक छछैना, 203.मिलिक बनहरा, 204.मानिकपुर, 205.महगानी, 206.महुअट, 207.मानपुर, 208.मानिकपुर, 209.मिर्जापुर कबीरपुर, 210.मिर्जापुर सई, 211.मिश्री, 212.मिलावली, 213.मुक्तायलपुर, 214.मुजफ्फरपुर हिरोंदी, 215.मुस्तफापुर राजपुर, 216.मुबारिकपुर रिजोर, 217.मुबारिकपुर छछैना, 218.मुबारिकपुर निबरूआ, 219.मुबारिकपुर सराय, 220.महमूदपुर नगला बेला, 221.यादगारपुर दौलतपुर, 222.यूसुफपुर नगला धनी, 223.रजकोट, 224.रजपुरा, 225.रसकपुर,
226.रामपुर कीलरमऊ, 227.रामगढ़, 228.राधेनगर, 229.रामनगर जलालपुर, 230.रामनगर रिजोर, 231.रामपुर घनश्याम, 232.रारपट्टी, 233.रिजोर, 234.रैवाड़ी, 235.लखमीपुर, 236.लभैटा, 237.लालगढ़ी, 238.लालपुर बरौली, 239.लोथरा, 240लोया बादशाहपुर प्रीतमसिंह, 241.लोया बादशाहपुर बलबंतसिंह, 242.नंदपुर बेलामई, 243.वाहिद बीबीपुर, 244.सरफुद्दीन हुसैनपुर, 245.शहवाजपुर, 246.श्यामपुर वीरान, 247.शिवसिंहपुर नगला निजाम, 248.शाहआलमपुर, 249.शाहपुर मानिकपुर, 250.शाहपुर मिलावली, 251.सउआपुर, 252.सकतपुर एटा 253.सकतपुर सकीट, 254.सकीट, 255.सदरपुर,
256.सफेदपुर, 257.सबलपुर, 258.सदलगढ़, सदरपुर, 259.सराय जवाहरपुर, 260.सलेमपुर कुंवरपुर, 261.सलेमपुर खेडि़या, 262.सलेमपुर सराय, 263.सलेमपुर सानी, 264.साइसपुर बरौली, 265.साइसपुर सकीट, 266.सिकन्दपुर रिजोर, 267.सिंगपुर फफोतू, 268.सिंगपुर लोया, 269.सिरांव, 270.सिंघपुर, 271.शीतलपुर, 272.सरजनपुर, 273.सुन्दरपुर, 274.सेनाकलां, 275.सैंथरी, 276सैदपुर, 277.सैलार, 278.हरनावली, 279.हरचंदपुर कलां, 280हरचंदपुर खुर्द, 281.हसनपुर, 282.हसनपुर मलौदिया, 283.हिम्मतपुर चाचरमउ, 284.हिम्मतपुर नासिरपुर, 285.हैदरपुर।
2- जलेसर तहसील
जिले के दक्षिणी-पश्चिमी छोर पर स्थित यह तहसील 27.28 से 27.35 उत्तरी अक्षांश तथा 78.11 से 7831 पूर्वी देशान्तर के मध्य फैली है। इस तहसील की लम्बाई उत्तरी-पूर्वी सीमा पर मात्र 16 किमी है। तहसील के उत्तर में हाथरस तथा दक्षिण में आगरा जिला हैं। दक्षिणी-पूर्वी सीमा फिरोजाबाद तथा पश्चिमी सीमा हाथरस जिले से लगती है। तहसील का क्षेत्रफल 581.6 वर्गकिमी है। तहसील में अवागढ व जलेसर- दो विकासखंड हैं। इनमें जलेसर विकासखंड का क्षेत्रफल 300.67 वर्गकिमी तथा अवागढ़ विकासखंड का क्षेत्रफल 280.93 वर्गकिमी है। तहसील में एकमात्र परगना जलेसर है।

4. जलेसर
1889 में एटा जिले का भाग बना जलेसर परगना 151 राजस्व गांवों का एकमात्र ऐसा परगना है जहां एक ही परगने पर तहसील कायम है। इस परगना तहसील में- जलेसर, सकरौली व अवागढ़- 3 थानाक्षेत्र हैं।
परगने के गांव
1.अकबरपुर साथा, 2.अकबरपुर हवेली, 3.अताउल्लापुर, 4.अब्दुल हई पुर, 5.अवागढ़, 6.अरबगढ़, 7.आराजी वीरहार, 8.इब्राहीमपुर, 9.इसौली, 10.अगरपुर, 11.उड़ेरी, 12.ओनेरा, 13.ऊंचागांव, 14.कपरई, 15.करथनी, 16.करहला 17.कासिमपुर, 18.कुजलपुर, 19.कोसमा, 20.कुसवा, 21.किसर्रा अमृतपुर, 22.खटौटा, 23.खानपुर, 24.खेड़ा ग्वारऊ, 25.खेड़ा नूंह, 26.खेडि़या ताज, 27.खैरारा, 28.गदेसरा, 29.गनेशपुर, 30.ग्यालियारा, 31.गहला, 32.गुदाऊ, 33.गोपालपुर, 34.गादुरी, 35.गोरखपुर, 36.चिरगंवा, 37.जिनावली, 38.चुरथरा, 39.जमालपुर गादुरी, 40.जमालपुर दुर्जन, 41.जरानी खुर्द कलां, 42.जमों, 43.जलूखेड़ा
44.जलेसर, 45.जैनपुरा, 46.टिकाथर, 47.तखावन, 48.तिसार, 49.दलशाहपुर, 50.दुल्हा, 51.दौलतपुर गिलौला, 52.दौलतपुर मुश्की, 53.देवकरनपुर, 54.दोषपुर, 55.नगला अन्नी, 56.नगला चांद, 57.नगला धारा, 58.नगला मितन, 59.नगला मीरा, 60.नगवाई 61.नगला सुखदेव, 62.नरौरा, 63.नरहुली, 64.नारऊ वीरनगर, 65.नीमखेडा़, 66.नौह खास, 67.पटना, 68.पवरा, 69.पवाह, 70.पसियापुर बेगमपुर, 71.पाईन्दापुर, 72.पहाड़मलपुर, 73.पिलखतरा, 74.पुन्हैरा, 75.पोंडरी, 76.फरीदपुर, 77.बछेपुरा, 78.बढ़ावली, 79.बढ़नपुर कुन्जलपुर, 80.बुधैरा, 81.बदनपुर काजीपुर, 82.ब्रजपुर चंदा, 83.बनवारीपुर, 84.बरा भौंडेला, 85.बरई कल्यानपुर, 86.बीरनगर,
87.बलीपुर उर्फ नगला बाले, 88.बलेसरा, 89.बारा समसपुर, 90.बाबरपुर, 91.बिचपुरी, 92.बिशनीपुर, 93.बेरनी, 94.बेगमपुर, 95.बेर्राकलां, 96.बोर्राखुर्द 97.बहादुरपुर कासिमपुर, 98.भ्याऊ, 99.मई, 100.मकसूदपुर, 101.मुढ़ई प्रहलादनगर, 102.मंडनपुर, 103.मुड़सवां, 104.महानमई, 105.महकी खुर्द कलां, 106.मिसौली, 107.मितारौल, 108.मिर्जापुर गौसपुर, 109.मीसाकलां, 110.मौजमपुर, 111.मुकुटपुर, 112.मौहब्बतपुरा, 113.मोहब्बतपुर गहरवार, 114.मुहम्मदपुर उर्फ भूड़गड्ढा, 115.मोहनपुर, 116.रनौसा, 117.रेजुआ, 118.रोहिना मिर्जापुर, 119.रजानगर, 120.रसीदपुर, 121.रसीदपुर खेडि़या, 122.रसीदपुर मितरौल, 123.राजारामपुर उर्फ गड्ढा, 124.राजमलपुर टिमरूआ, 125.रामरायपुर, 126.लखमीपुर, 127.लोहचा नाहरपुर, 128.लोधीपुर, 129.बलीदादपुर, 130.शकरौली, 131.शमसपुर, 132.शहनौआ,
133.मीसा खुर्द, 134.सरानी, 135.सरकरी, 136.सराय राजनगर, 137.सराय नींम, 138.सालवाहनपुर, 139.साथा नवीपुर, 140.सिकन्दरपुर मढ़ी, 141.सिरगंवा, 142.शाहनगर टिमरूआ, 143.सकरा, 144.सिमराऊ, 145.सिलामई, 146.सोना, 147.हबीबुल्लापुर, 148.हसनअलीपुर बसई, 149.हसनगढ़, 150.हादीदादपुर, 151.हिनौना।

3- अलीगंज
जिले के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर स्थित यह तहसील 27.19 से 27.37 उत्तरी अक्षांश तथा 78.52 से 79.17 पूर्वी देशान्तर के मध्य फैली है। तहसील के पूर्व में फरूखाबाद, उत्तर में कासगंज, दक्षिण मं मैनपुरी जिले हैं। तहसील का क्षेत्रफल 632.71 वर्गकिमी है। तहसील में अलीगंज व जैथरा- 2 विकासखंड हैं। इनमें अलीगंज विकासखंड का क्षेत्रफल 339.94 वर्गकिमी है, जबकि जैथरा का 309.19 वर्गकिमी। तहसील में आजमनगर व बरना- 2 परगने हैं। तहसील में- अलीगंज, जैथरा, नयागांव, जसरथपुर व राजा का रामपुर- 5 थानाक्षेत्र हैं।

5. आजमनगर
उत्तर व पश्चिम में पटियाली परगना, पश्चिम में सिढ़पुरा व बरना, दक्षिण में मैनपुरी तथा पूर्व में फरूखाबाद से घिरा आजमनगर परगना कहते हैं कि अतीत में शम्शाबाद परगने के उस भाग पर बनाया गया है जिसे तत्कालीन कंपनी सरकार ने फरूखाबाद के बंगश शासकों से लिया था।
तहसील अलीगंज के इस परगने में 228 राजस्व ग्राम हैं।
परगने के गांव
1.अकबरपुर कोट, 2.अकबरपुर केशोराय, 3.अकबरपुर लालसहाय, 4.अगौनापुर, 5.अंगदपुर, 6.अंगरैया गंगाई, 7.अंगरैया जमुनाई, 8.अमोगपुर भाटान, 9.अमोगपुर ब्रहमनान, 10.अर्जुनपुर सिमरई, 11.अलीगंज, 12.अलीपुर, 13.अलीयापुर, 14.अलहदादपुर, 15.अब्दुल्लापुर, 16.अमृतपुर रघूपुर, 17.अमरोली रतनपुर, 18.आसलपुर इस्माहिलपुर, 19.अहमदपुर, 20.उभई असदपुर, 21.इमादपुर, 22.इस्माइलपुर, 23.अहरई विचनपुर, 24.औरंगाबाद, 25.ककराला, 26.कुकराया रतनपुर, 27.ककोड़ा, 28.कछियावाड़ा, 29.कुतलूपुर आसेपुर, 30.कंचनपुर आसेपुर, 31.कलन्दरनगर, 32.कलुआपुर टीलपुर, 33.किनोड़ी खैराबाद, 34.किशनपुर, 35.कलिंजर, 36.कनेसर नगला डब्लू, 37.कैला, 38.कुदेसा हरदेपुर, 39.कूल्हापुर खुर्द, 40.कूल्हापुर बुजुर्ग, 41.कुढ़ा, 42.खतिया, 43.खरसुलिया, 44.खेडि़या पमारान,
45.खिरिया नगरशाह, 46.खिरिया बनार, 47.खैरपुरा उर्फ सिकन्दरपुर सालवाहनपुर, 48.गढि़या जगन्नाथ, 49.गढिया धौकल, 50.गढ़ी खेड़ई, 51.गढी रोशन 52.गनपतिपुर बढ़ापुर, 53.गही, 54.गुलशनाबाद, 55.गलारपुर, 56.गंगपुर, 57.गैसिंगपुर, 58.गुहटिया खुर्द कलां, 59.गुनामई, 60.गौरा चम, 61.चकतराई, 62.चकधो्रधा, 63.चकपहाड़ा, 64.चकमीरापुर, 65.चंदनपुर, 66.चिलौला, 67.चैकी अतनपुर, 68.जमलापुर, 69.जमालपुर मजरा भरगैन, 70.जसरथपुर, 71.जहांगीरपुर, 72.जहाननगर, 73.जाजलपुर, 74.जानीपुर, 75.जिटौरा भान, 76.जिनासी, 77.जिरौलिया, 78.जुनैदपुर, 79.जैथरा, 80.झकरई, 81.टिकैतपुरा, 82.ढर्रा, 83.डाडा, 84.ढिवैया अख्तारपुर, 85.ढटींगरा, 86.तमरौरा, 87.टिमरूआ शिरोमणि, 88.तरगंवा,
89.तिगरा भमौरा, 90.ताजपुर अद्दा, 91.ताजपुर तिगरा, 92.तिसौरी, 93.तुगई, 94.तोसईया किसानान, 95.तोसईया मलूक, 96.थाना दरियाबगंज, 97.दतौली, 98.दहेलिया पूठ, 99.दादूपुर खुर्द, 100.दाउदगंज, 101.दादोपुर असगरपुर, 102.देवतरा, 103.दिउना, 104.दिउरैया, 105.धरसेपुर, 106.धरौली, 107.दहलई, 108.गेबर असदुल्लापुर, 109.नकटई कलां, 110.नकटई खुर्द, 111.नगरिया उर्फ सिकन्दरपुर, 112.नगला अचल, 113.नगला अमीर, 114.नगला उमेद, 115.नगला गिरधर, 116.नगला गुलरिया, 117.नगला दयाल, 118.नगला नौगजा, 119.नगरिया पैढ खरसेला, 120.नगला सावां, 121.नगला परम, 122.नगला बल्लम, 123.नगला साबा, 124.नथुआपुर, 125.नदराला, 126.नवादा, 127.नयागांव, 128.नई मुसियार, 129.नाबर, 130.नौगवां चहका, 131.पचन्दा, 132.परतापपुर कटारा, 133.पलरा, 134.परधनापुर, 135.पहाड़पुर, 136.मायमझेता चक न01,
137.पिपरगांव, 138.पुरंजला, 139.पुराहार बुलाकीनगर, 140.पिजरी गम्भीर सिंह, 141.पिंजरी सुमेर सिंह, 142.फतेहपुर, 143.फरसौली, 144.पहरैया, 145.फिरोजपुर उर्फ फर्दपुर, 146.परौली सुहागपुर, 147.बुधूपुर गढि़या, 148.बधौली, 149.बनिया ढहरा, 150.बनी, 151.बरईपुर, 152.बल्लूपुर, 153.बादूपुरा, 154.बिचपुरी इमादपुर, 155.बिछन्द पहाड़पुर, 156.बिछौरा गंग, 157.विजयपुर, 158.विजैदपुर, 159.बिजौरा स्वर्गद्वारी, 160.विल्सढ़ पट्टी, 161.विल्सढ़ पछांया, 162.विल्सढ पुवांया, 163.विलासवास, 164.विथरा, 165.वीरपुर, 166.बहगौं, 167.भदकी, 168.भदुइयामठ, 169.भरापुरा, 170.भरगैन मशरक, 171.भमौरा, 172.भलौल, 173.भवनपुर, 174.भुजैला, 175.मझोला, 176.मितौलिया, 177.मंसुलिया, 178.मोहकमपुर, 179.महाखेड़ा, 180.महाराजपुर, 181.मिहुता, 182.मिल्क इलाकी, 183.माया चक नगला इन्धीर, 184.मुहम्मदपुर पट्टी,
185.मुहम्मदनगर बझेरा, 186.मेदूपुरा, 187.मेदपुर, 188.मौजपुर, 189.मंगदपुर, 190.इकौटी, 191.रजबपुर, 192.रतनपुर फतियापुर, 193.रन्धीरपुर, 194.रसूलपुर, 195.राजा का रामपुर, 196.रामनगर, 197.रामनगरिया आशाराम, 198.राया, 199.राई, 200.रूस्तमनगर, 201.रौरी समौगर, 202.लुतफुल्लापुर उर्फ लडसिया, 203.लाड़मपुर कटरा, 204.लाड़मपुर बुजुर्ग, 205.ललहट, 206.लुहारीखेड़ा, 207.लुहारी गनी, 208.सधेरा, 209.सराय अगहत, 210.श्रीनगला, 211.सरौतिया, 212.सरौठ पछाया, 213.सरौठ पुवांया, 214.सलैमपुरा, 215.सुमौर, 216.ससौता जगदीश, 217.ससौता दोषपुर, 218.सहोरी, 219.साढ़रपुर, 220.सहादतनगर, 221.सिकन्दरपुर फैरू, 222.सिकन्दरपुर कहोता, 223.सोखा, 224.शाहपुर टहला, 225.शिकारपुर, 226.हत्सारी, 227.हरवेगढि़या, 228.हरसिंगपुर।

6. बरना
यह भी तहसील अलीगंज का परगना है। यह उत्तर में सिढ़पुरा, पूर्व में आजमनगर, दक्षिण में मैनपुरी जिले का कुरावली तथा पश्चिम में सोंहार परगना से घिरा बरना 40 राजस्व ग्रामों का परगना है। 1872-73 के गजेटियर के अनुसार इसका क्षेत्रफल 24573 एकड़ है।
परगने के गांव
1.उदयपुरा, 2.कल्यानपुरा, 3.कस्तूरपुरा, 4.कसैला, 5.श्रवता, 6.कठिंगरा, 7.खिरिया, 8.खेडि़या मजरा कस्तूरपुरा, 9.खेतूपुरा, 10.गांगूपुर, 11.गांगूपुरा, 12.गुलनगरिया, 13.चकमेरापुर, 14.रूपधनी, 15.चकसिराऊ, 16.चिलमापुर, 17.टिकाथर, 18.ततरई, 19.दहेलिया, 20.दौलतपुरा, 21.धुमरी, 22.नखतपुरा, 23.निजामाबाद, 24.फगनौल, 25.बाजीदपुर, 26.बरना, 27.बरौलिया, 28.बसंतपुर, 29.मिडिया उर्फ मधुवन, 30.भाऊपुरा, 31.मानिकपुरा, 32.मुहीउद्दीनपुर, 33.लालपुर जहांगीराबाद, 34.सदियापुर, 36.सिराऊ, 37.सलेमपुर, 38.शेखपुरा, 39.हरसिंहपुर, 40.हाजीपुर